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RBI की अनसिक्योर्ड लोन पर सख्ती से कंज्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों को मार्जिन की चिंता

हालिया त्योहारी सीजन के दौरान कंज्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों ने अपने तमाम उत्पादों के लिए लंबी अव​धि के ऋण, शून्य डाउन पेमेंट और शून्य ब्याज पर ऋण जैसी पेशकश की थी।

Last Updated- November 20, 2023 | 9:10 PM IST
Improved supply chains for consumer durables firms

असुर​क्षित ऋण पर भारतीय रिजर्व (आरबीआई) बैंक की सख्ती के कारण कंज्यूमर ड्यूरेबल विनिर्माताओं और खुदरा विक्रेताओं की चिंता बढ़ गई है। आरबीआई की कार्रवाई से उपभोक्ता वस्तुओं के लिए आसान फाइनैंस की लागत बढ़ने से विक्रेताओं को मुनाफा और मार्जिन प्रभावित होने की आशंका है।

हालिया त्योहारी सीजन के दौरान कंज्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों ने अपने तमाम उत्पादों के लिए लंबी अव​धि के ऋण, शून्य डाउन पेमेंट और शून्य ब्याज पर ऋण जैसी पेशकश की थी। इससे ग्राहकों के लिए उत्पाद कहीं अ​धिक किफायती हो गए थे। कंपनियां पहले कुछ ही उत्पादों पर 18 से 24 महीनों की आसान मासिक किस्त (ईएमआई) का विकल्प उपलब्ध कराती थीं, मगर अब तमाम उत्पादों के लिए यह पेशकश की जा रही है।

आरबीआई की सख्ती का खमियाजा उपभोक्ता को नहीं भुगतना पड़ेगा। कंपनियां फिलहाल इसे स्पष्ट होने का इंतजार कर रही हैं लेकिन उन्हें मार्जिन प्रभावित होने की चिंता भी सता रही है।

गोदरेज ऐंड बॉयस की इकाई गोदरेज अप्लायंसेज के कारोबार प्रमुख एवं कार्यकारी उपाध्यक्ष कमल नंदी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘उद्योग की कुल बिक्री में फाइनैंस के जरिये खरीदारी का योगदान करीब 40 फीसदी है और यह अच्छी खासी हिस्सेदारी है। इसलिए ब्याज दर को बढ़ाने वाला कोई भी कदम उद्योग को प्रभावित करेगा और वह किस हद तक प्रभावित होगा यह ब्याज दर में हुई वृद्धि पर निर्भर करेगा। हम उस पर करीबी नजर रखेंगे।’

करीब पांच साल पहले फाइनैंस के जरिये 20 फीसदी कंज्यूमर ड्यूरेबल उत्पादों की बिक्री होती थी। मगर अब उसमें काफी वृद्धि हो चुकी है क्योंकि उपभोक्ता ऋण उपलब्ध कराने वाली कंपनियों की तादाद भी 2 से बढ़कर 14-15 हो चुकी है।

भारत में कोडक, थॉमसन और ह्वाइट-वे​स्टिंगहाउस की ब्रांड लाइसेंसी एसपीपीएल के सीईओ अवनीत सिंह मारवाह ने कहा, ‘इसका असर ब्रांडों के मुनाफे और मार्जिन पर दिखेगा क्योंकि हमें फाइनैंस लागत में वृद्धि का बोझ उठाना पड़ेगा।’

उन्होंने कहा कि आसान फाइनैंस विकल्पों के कारण ग्राहक प्रवेश स्तर से मझोले स्तर और प्रीमियम श्रेणी की ओर रुख कर रहे हैं। आरबीआई को ग्राहकों के इस रुझान पर गौर करना चाहिए क्योंकि उद्योग पर उसका प्रभाव पड़ेगा।

एक खुदरा श्रृंखला के वरिष्ठ अ​धिकारी ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि बढ़ी हुई लागत का बोझ हितधारकों को उठाना पड़ेगा, मगर इस बात की भी संभावना है कि उपभोक्ताओं के लिए फाइनैंस की शर्तों में भी बदलाव हो। इसलिए ग्राहकों के लिए प्रॉसेसिंग शुल्क अथवा एकमुश्त भुगतान आदि में वृद्धि भी हो सकती है।

उन्होंने कहा कि ब्याज दरें पहले से ही ऊंची हैं और उसका प्रभाव अवश्य पड़ेगा। बढ़ी हुई लागत का बोझ सीधे ग्राहकों के कंधों पर नहीं डाला जा सकता है क्योंकि वे इस श्रेणी में शून्य ब्याज पर ईएमआई के साथ खरीदारी करते हैं।

विजय सेल्स के प्रबंध निदेशक नीलेश गुप्ता का मानना है कि आरबीआई की सख्ती से मार्जिन को झटका लगेगा, लेकिन उसका असर अ​धिक समय तक नहीं रहेगा।

उन्होंने कहा, ‘इससे फाइनैंस की लागत बढ़ जाएगी। विनिर्माताओं और खुदरा विक्रेताओं को अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी, मगर वह बहुत अधिक नहीं होगी। हालांकि इसे स्पष्ट करने की जरूरत है।’ इस साल त्योहारी सीजन के दौरान विजय सेल्स ने पिछले साल के मुकाबले अ​धिक उत्पादों पर फाइनैंस विकल्प की पेशकश की थी।

First Published - November 20, 2023 | 9:10 PM IST

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