facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अ​भियान के 10 साल पूरे, लेकिन बेटियों की राह में खड़े अभी चुनौतियों के कई पहाड़

इस पहल को पिछले सप्ताह 10 वर्ष पूरे गए हैं। इस दौरान इसने सफलता के कई पड़ाव हासिल किए, लेकिन चुनौतियों के कई पहाड़ अभी भी जस के तस खड़े हैं।

Last Updated- January 31, 2025 | 11:01 PM IST

‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा’ लड़कियों के अ​धिकारों के प्रति जागरूकता का प्रतीक बन चुका है। खास कर सार्वजनिक स्थलों और वि​भिन्न अ​भियानों में यह नारा खूब दिखाई और सुनाई देता है। यह अ​भियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा में शुरू किया था। इसका उद्देश्य बच्चियों को बेहतर जिंदगी, ​शिक्षा, सुरक्षा और उनके सशक्तीकरण पर जोर देते हुए बाल लिंगानुपात में सुधार करना एवं समाज जैसी संस्था को मजबूत करना है। इस पहल को पिछले सप्ताह 10 वर्ष पूरे गए हैं। इस दौरान इसने सफलता के कई पड़ाव हासिल किए, लेकिन चुनौतियों के कई पहाड़ अभी भी जस के तस खड़े हैं।

पहले इस कार्यक्रम को मुख्यत: 100 जिलों के लिए शुरू किया गया था, लेकिन धीरे-धीरे यह पूरे देश में फैल गया। इसमें ब​च्चियों के प्रति समाज का नजरिया बदलने पर ध्यान केंद्रित करते हुए दृष्टिकोण पर आधारित प्रयासों एवं मीडिया प्रचार के सहारे सामाजिक परिवर्तन लाने पर जोर दिया जाता है। हाल ही में इस ​अ​भियान के ​लिए कम लागत वाली जागरूकता रणनीति अपनाई गई है। इसमें खेलों में भागीदारी, आत्मरक्षा कौशल और स्कूलों में सेनेटरी नेपकिन वितरण से मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य में सुधार जैसी पहल शुरू कर बालिकाओं के सश​क्तीकरण पर भी जोर दिया जा रहा है।

लिंगानुपात में सुधार की को​शिश

यह योजना जन्म के समय लिंगानुपात में आ रही भारी गिरावट को रोकने के लिए शुरू की गई थी, क्योंकि समाज में लगातार बालिकाओं के भ्रूण को नष्ट किए जाने के संकेत मिल रहे थे। वर्ष 2014-15 में जन्म के समय लिंगानुपात प्रति 1,000 लड़कों पर 918 ब​​च्चियों का था, जिससे यह पता चलता है कि समाज में बेटे की चाहत कहीं अ​धिक बलवती है। लिंगानुपात में इस प्रकार के असंतुलन की सबसे बड़ी वजह लिंग आधारित गर्भपात और कन्या भ्रूण हत्या है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या नि​धि की साल 2020 में आई एक रिपोर्ट से पता चला कि भारत में जन्म से पहले और बाद में लड़के की चाहत के कारण लगभग 4.58 करोड़ ब​च्चियां लापता थीं।इसके अलावा प्यू रिसर्च सेंटर के अनुमान के मुताबिक सन 2000 से 2019 के बीच कम से कम 90 लाख लड़कियां गायब हो गईं।

जब से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ ​अ​भियान शुरू हुआ, उसके बाद से बच्चों के लिंगानुपात में काफी सुधार आया। वर्ष 2021-22 में यह अनुपात बढ़कर 1,000 लड़कों पर 934 लड़कियां हो गया। लिंगानुपात सुधार की दिशा में यह बहुत अच्छा आंकड़ा है, लेकिन अभी भी यह पर्याप्त नहीं है, क्योंकि यह साल 1961 के 1,000 लड़कों पर 976 लड़कियां और उसके बाद 1991 में 945 लड़कियों के स्तर से बहुत पीछे है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जन्म के समय प्राकृतिक लिंगानुपात प्रति 1,000 लड़कों पर 943 से 952 लड़कियां होता है। इससे पता चलता है कि लड़के और लड़कियों की जनसंख्या में संतुलन बनाए रखने और कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए अभी बहुत किया जाना बाकी है।

अ​भियान की सफलता पैमाना

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अ​भियान की सफलता को आंकने का एक बेहतर पैमाना स्कूलों में बच्चियों का पंजीकरण है। इस योजना के तहत वर्ष 2017 में स्कूलों में माध्यमिक स्तर पर ब​च्चियों का पंजीकरण अनुपात 76 प्रतिशत से बढ़ाकर 79 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया था। यह लक्ष्य हासिल तो कर लिया गया, लेकिन बाद में इसमें मामूली गिरावट देखने को मिली। वर्ष 2020-21 में बालिकाओं का स्कूलों में पंजीकरण अनुपात बढ़ते-बढ़ते 80.1 प्रतिशत पर पहुंच गया ​था, लेकिन 2023-24 के दौरान यह दोबारा गिरकर 78 प्रतिशत पर आ गया। लेकिन अभी भी यह लड़कों के पंजीकरण अनुपात 76.8 प्रतिशत से अ​धिक रहा। दरअसल, लड़कों का पंजीकरण अनुपात भी गिरा है, जो कि वर्ष 2020-21 में 78.3 प्रतिशत पर पहुंच गया ​था।

लेकिन, ​शिक्षा के स्तर पर कुल पंजीकरण दर में ​उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। हाल के वर्षों में लड़कों और लड़कियों, दोनों के ही स्कूल पंजीकरण में गिरावट आई है। उच्च माध्यमिक स्तर पर वर्ष 2022-23 में लड़कियों का पंजीकरण सबसे अ​धिक 58.7 प्रतिशत दर्ज किया गया था, लेकिन यह 2023-24 में गिरकर 58.2 प्रतिशत पर आ गया। इसी प्रकार 2021-22 में इसी स्तर पर लड़कों की पंजीकरण दर 57 प्रतिशत थी, जो 2023-24 में गिरकर कुल 54.4 प्रतिशत पर आ गई।

खास बात यह है कि पिछले कई वर्षों से भारत में ब​च्चियों का स्कूलों में पंजीकरण अनुपात लड़कों के मुकाबले लगातार अ​धिक बना हुआ है। लेकिन, यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि इसमें बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अ​भियान की क्या प्रभावी भूमिका रही। सरकारी आंकड़ों में यह कहा गया है कि स्कूलों में लड़कों के मुकाबले लड़कियों का पंजीकरण यह अ​भियान शुरू होने से पहले भी अधिक ही था।

एक और बात ध्यान देने की यह है कि भले स्कूलों में लड़कियों का कुल पंजीकरण अनुपात लड़कों के मुकाबले अ​धिक रहा हो, लेकिन पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में साक्षरता दर बहुत कम है। वर्ष 1991 में महिलाओं में साक्षरता दर 39.29 प्रतिशत थी जबकि उस समय पुरुषों में यह 64.13 प्रतिशत दर्ज की गई थी। वर्ष 2001 तक महिलाओं की साक्षरता दर बढ़ी और यह 53.67 प्रतिशत पर आ गई जबकि पुरुषों की साक्षरता दर कहीं अ​धिक बढ़कर 75.26 प्रतिशत हो गई। साक्षरता दर में यह अंतर 2011 में कुछ कम हुआ जब महिलाओं में यह 64.63 प्रतिशत और पुरुषों में 80.88 प्रतिशत पाया गया। वर्ष 2022 में महिलाओं में साक्षरता दर तेजी से बढ़ते हुए 69 प्रतिशत हो गई जबकि पुरुषों में यह 83 प्रतिशत पर रही। इसी प्रकार 2023 में महिलाओं में साक्षरता दर 70 प्रतिशत पहुंच गई जबकि पुरुषों में यह 85 प्रतिशत के स्तर पर रही। यानी दशकों से महिलाओं की साक्षरता दर में काफी सुधार देखने को मिला है, लेकिन पुरुषों के मुकाबले इसका अंतर लगातार बना हुआ है।

हिंसा और अपराध आज भी बड़ी चिंता

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य लड़कियों में आत्मरक्षा कौशल को अभी पाना शेष है, क्योंकि कुछ सकारात्मक प्रगति के बावजूद महिलाओं पर हिंसा और अपराध आज भी बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। राष्ट्रीय अपराध पंजीकरण ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2018 से 2022 के बीच महिलाओं पर अपराध की दर 100,000 महिलाओं पर 12.9 प्रतिशत दर्ज की गई। वर्ष 2022 में महिलाओं पर अपराध की घटनाएं प्रति एक लाख महिलाओं पर 66.4 रही जो वर्ष 2018 में 58.8 दर्ज की गई थी।

फंड आवंटन और उसका खर्च भी चुनौती

अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते हुए इस अ​भियान के समक्ष फंड आवंटन संबंधी चुनौतियां भी कुछ कम नहीं रहीं। उदाहरण के लिए वर्ष 2020 में इस अ​​भियान के लिए 220 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया। इस तरह प्रत्येक जिले के हिस्से में 34 लाख रुपये आए, लेकिन वास्तविक खर्च आवंटित रा​शि से लगातार कम ही बना रहा। वर्ष 2014-15 में सरकार ने इसके लिए 90 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, लेकिन केवल 34.84 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए। उसके बाद के वर्षों में भी यही ​स्थिति देखने को मिली। जैसे, वर्ष 2020-21 में 220 करोड़ रुपये इस योजना के लिए रखे गए, लेकिन 60.57 करोड़ रुपये ही खर्च किए जा सके।

वर्ष 2021-22 में संबल पहल के साथ इस योजना को शामिल किए जाने के बाद इसके बजट के बारे में सही-सही जानना और भी मु​श्किल हो गया। आंकड़ों से पता चलता है कि संबल के तहत आंवटित बजट का भी पूरा-पूरा इस्तेमाल नहीं हो सका। बेटी बचाओ, बेटी बढ़ाओ के बजट को लेकर एक खास बात यह भी है कि इसके लिए 2014-15 और 2022-23 के बीच आवंटित कुल बजट का 51.2 प्रतिशत मीडिया संबंधी गतिवि​धियों और अभियानों पर खर्च किया गया।

First Published - January 31, 2025 | 10:05 PM IST

संबंधित पोस्ट