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Classical Languages: भारत सरकार ने 5 नई शास्त्रीय भाषाओं को दी मंजूरी, कुल संख्या हुई 11

भारत में शास्त्रीय भाषाओं को "सेम्मोझी" कहा जाता है। ये वे भाषाएं हैं जिनका लंबा और समृद्ध साहित्यिक इतिहास होता है। भारत में 11 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है।

Last Updated- October 04, 2024 | 6:34 PM IST
Ashwini Vaishnaw

केंद्र सरकार ने गुरुवार को मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक कार्यक्रम में इसकी घोषणा करते हुए कहा कि सरकार इन भाषाओं की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने पर काम कर रही है।

कुछ भाषाएं शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने के लिए एक दशक से संघर्ष कर रही थीं। महाराष्ट्र सरकार ने 2013 में मराठी को यह दर्जा देने का प्रस्ताव रखा था, और 2014 में पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इसके लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाई थी। समिति की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार ने मराठी को शास्त्रीय भाषा के सभी मानदंडों को पूरा करने वाला पाया।

पहले से शास्त्रीय भाषाओं की सूची में शामिल भाषाएं

तमिल (2004), संस्कृत (2005), कन्नड़ (2008), तेलुगु (2008), मलयालम (2013) और ओड़िया (2014) पहले से ही शास्त्रीय भाषा का दर्जा पा चुकी हैं। सभी शास्त्रीय भाषाएं भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में सूचीबद्ध हैं।

शास्त्रीय भाषा का महत्व और मानदंड

भारत में शास्त्रीय भाषाओं को “सेम्मोझी” कहा जाता है। ये वे भाषाएं हैं जिनका लंबा और समृद्ध साहित्यिक इतिहास होता है। भारत में 11 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है। 2004 में भारत सरकार ने घोषणा की थी कि जो भाषाएं कुछ निश्चित मानदंडों को पूरा करती हैं, उन्हें शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया जा सकता है। यह निर्णय भाषाई विशेषज्ञ समिति और संस्कृति मंत्रालय द्वारा निर्धारित किया गया था।

किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने पर कुछ विशेष सुविधाएं मिलती हैं, जैसे हर साल दो अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, शास्त्रीय भाषा अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में विशेषज्ञों के लिए प्रोफेशनल चेयर स्थापित करने की व्यवस्था।

शास्त्रीय भाषा के मानदंड

संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, शास्त्रीय भाषा का दर्जा पाने के लिए निम्नलिखित मानदंड जरूरी हैं:

  • भाषा के प्रारंभिक ग्रंथ या इतिहास 1500 से 2000 साल पुराने होने चाहिए।
  • भाषा में प्राचीन साहित्य या ग्रंथ होने चाहिए, जिन्हें इसके बोलने वाले अपनी सांस्कृतिक धरोहर मानते हों।
  • भाषा की साहित्यिक धरोहर मौलिक होनी चाहिए, और किसी अन्य भाषा से उधार न ली गई हो।
  • शास्त्रीय भाषा और उसके आधुनिक रूप में स्पष्ट अंतर होना चाहिए, यानी इनका साहित्य और आधुनिक भाषा अलग-अलग हों।

First Published - October 4, 2024 | 6:34 PM IST

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