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7 मई की ब्लैकआउट ड्रिल: कैसे युद्ध की तैयारी आपकी ज़िंदगी पर डाल सकती है असर

7 मई को होंगे ब्लैकआउट और मॉक ड्रिल्स: दिल्ली समेत 244 ज़िलों में अलर्ट, जानिए क्या होता है ब्लैकआउट और क्यों ज़रूरी होता है जंग के वक्त

Last Updated- May 06, 2025 | 8:26 PM IST
blackout drills

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद केंद्र सरकार सतर्क हो गई है। गृह मंत्रालय ने सोमवार शाम कई राज्यों को निर्देश दिया कि 7 मई को देश के 244 “सिविल डिफेंस जिलों” में मॉक ड्रिल यानी युद्ध जैसी स्थिति से निपटने की तैयारी की जाए। इन अभ्यासों में एयर रेड सायरन, ब्लैकआउट यानी अंधेरा कर देना, लोगों को सुरक्षित रहने की ट्रेनिंग और जरूरी सेवाओं को छिपाने जैसे अभ्यास किए जाएंगे।

ब्लैकआउट क्या होता है और युद्ध में क्यों ज़रूरी है?

ब्लैकआउट एक रणनीतिक कदम होता है जिसे युद्ध या युद्ध जैसे हालात में अपनाया जाता है। खासकर सीमा के नज़दीक के शहरों या अहम ठिकानों जैसे बिजलीघर, डैम, सरकारी या रक्षा से जुड़ी इमारतों में रात के समय पूरी तरह अंधेरा कर दिया जाता है। इस दौरान पूरे शहर की बिजली काट दी जाती है, यहां तक कि जेनरेटर या इन्वर्टर की रोशनी भी बंद रखने को कहा जाता है। इसका मकसद दुश्मन के विमान को टारगेट न मिल पाए, ताकि नागरिकों की सुरक्षा हो सके।

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भारत में कब-कब हुए ब्लैकआउट?

भारत ने दूसरे विश्व युद्ध में सीधे हिस्सा नहीं लिया था, लेकिन 1942 में जब जापान ने बर्मा (अब म्यांमार) पर कब्जा कर लिया और दार्जिलिंग के पास डलहौज़ी पर बम गिराया, तो कोलकाता जैसे शहरों में ब्लैकआउट शुरू हुए। इसके बाद 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में भी कई शहरों में रात भर ब्लैकआउट रहे। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, असम और पश्चिम बंगाल में भी रात में अंधेरा कर दिया जाता था ताकि दुश्मन के हवाई हमलों से बचा जा सके।
हालांकि 1999 के करगिल युद्ध में ब्लैकआउट नहीं हुए क्योंकि युद्ध पहाड़ों पर हुआ और वहां कोई नागरिक ठिकाना नहीं था।

ब्लैकआउट से आम लोगों की ज़िंदगी कैसे प्रभावित होती है?

1. दिनचर्या पर असर:

सूरज ढलते ही लोगों को घर लौटना पड़ता है। रोशनी ना होने से सड़कें सुनसान हो जाती हैं और दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है।

2. संचार बाधित होता है:

कई बार इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क बंद कर दिए जाते हैं, जिससे लोगों को अपनों से संपर्क करने में परेशानी होती है।

3. अस्पताल और ज़रूरी सेवाओं पर असर:

अस्पतालों में भी सीमित बिजली चलती है, जिससे मरीजों का इलाज मुश्किल हो जाता है। दवाइयों की दुकानों और क्लीनिकों के बंद होने से मुश्किलें बढ़ जाती हैं।

4. मानसिक तनाव:

अंधेरे और अनिश्चितता के माहौल से डर और घबराहट फैलती है। लोगों में चिंता, तनाव और असुरक्षा की भावना बढ़ जाती है।

5. आर्थिक नुकसान:

रात में कोई व्यापार नहीं हो पाता। लोग डर के कारण ज़रूरी सामान ज़्यादा खरीद लेते हैं, जिससे चीज़ों की कमी हो जाती है।

क्या आज के दौर में ब्लैकआउट काम करता है?

आज के समय में ड्रोन, सैटेलाइट और इंफ्रारेड जैसी तकनीकें इतनी आगे बढ़ चुकी हैं कि किसी जगह को अंधेरे में भी देखा जा सकता है। ऐसे में ब्लैकआउट से सुरक्षा की गारंटी नहीं मिलती। लेकिन ब्लैकआउट का असली मकसद होता है मानसिक तैयारी। जब लोग ये महसूस करते हैं कि वे सावधानी बरत रहे हैं, तो उनका डर थोड़ा कम होता है। इससे लोग अनुशासन में रहते हैं और प्रशासन के निर्देशों का पालन करते हैं।

7 मई की मॉक ड्रिल: दिल्ली में क्या तैयारियां?

सरकार ने बताया है कि इस दिन सायरन की टेस्टिंग, स्कूलों और आम लोगों को ट्रेंड करना, अहम ठिकानों को छिपाना और ब्लैकआउट का अभ्यास किया जाएगा। गलत जानकारी को रोकने के लिए कई सरकारी मंत्रालयों ने अपने सोशल मीडिया पर जरूरी सूचनाएं जारी करनी शुरू कर दी हैं। दिल्ली पुलिस ने हाई अलर्ट जारी कर दिया है। सीमा पर हरियाणा और उत्तर प्रदेश की ओर पैरा मिलिट्री और पुलिस बल तैनात कर दिए गए हैं। दिन और रात की पेट्रोलिंग बढ़ा दी गई है।

1971 का अनुभव: एक बुज़ुर्ग की यादें

नई दिल्ली के 72 वर्षीय बुज़ुर्ग ने 1971 के ब्लैकआउट को याद करते हुए बताया, “जैसे ही सायरन बजता था, पूरा शहर सन्नाटा ओढ़ लेता था। हम अंधेरे में खाना खाते और दुआ करके सो जाते थे। रोशनी तभी लौटती थी जब सुबह होती थी।” (PTI के इनपुट के साथ)

 

 

 

First Published - May 6, 2025 | 5:09 PM IST

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