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सवाल-जवाब: बड़ा बनाने की है जरूरत, मगर ऋणदाता के पास सीमित रकम

भारत को दिए जा रहे ऋण में हो रही वृद्धि के बारे में उम ने कहा कि किसी देश को दिए जाने वाले ऋण की मात्रा नीतिगत वार्ता और उसकी क्षमता पर निर्भर करती है।

Last Updated- October 08, 2023 | 10:09 PM IST
There is a need to make it bigger, but the lender has limited funds.

एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने हाल में अपने पूंजी प्रबंधन में सुधार किया है। इससे ऋण देने की उसकी क्षमता 100 अरब डॉलर बढ़ जाएगी। एडीबी के महाप्रबंध निदेशक जनरल वूचोंग उम ने रुचिका चित्रवंशी से बातचीत में कहा कि उनको इसे दोगुना, तिगुना एवं चार गुना करने और निजी पूंजी जुटाने की जरूरत है।

भारत को दिए जा रहे ऋण में हो रही वृद्धि के बारे में उम ने कहा कि किसी देश को दिए जाने वाले ऋण की मात्रा नीतिगत वार्ता और उसकी क्षमता पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा कि भारत एक विशाल देश है और ऋण लेने की उसकी क्षमता पर्याप्त है। मगर हमें बैंक ऋण के लायक परियोजनाएं सुनिश्चित करने की जरूरत है। मुख्य अंश:

आप किन सुधारों को आगे बढ़ा रहे हैं और एडीबी का अगला कदम क्या होगा?

हम कितना ​ऋण दे सकते हैं, इसे निर्धारित करने के लिए हमें सुनि​श्चित करना होता है कि हम कितना नुकसान झेल सकते हैं। हमारी नजर पूंजीकरण के एक विवेकपूर्ण स्तर पर है। हम कुछ ऐसी व्यवस्था कर पाएं हैं जहां डिफॉल्ट की ​स्थिति में वसूली की जा सके।

इसके अलावा कुछ बफर पूंजी भी रख सकते हैं ताकि अतिरिक्त ऋण की विशेष जरूरतों को पूरा किया जा सके। इसके लिए हमें कहीं अ​धिक संसाधन तलाश सकते हैं। हम जो कर सकते हैं उसे दोगुना, तिगुना और चार गुना करने की जरूरत है। इसका मतलब यह हुआ कि हमें अधिक निजी पूंजी जुटाने की जरूरत है।

आप किस प्रकार की निजी पूंजी जुटाने की उम्मीद कर रहे हैं?

निजी क्षेत्र में ऐसे तमाम निवेशक हैं जो अच्छी विकास परियोजना में निवेश के अवसर तलाशते हैं। निजी क्षेत्र उन परियोजनाओं में आसानी से निवेश कर सकता है जिनमें एडीबी शामिल है। वे ऋण अथवा इक्विटी निवेशक के रूप में भी जुड़ सकते हैं।

निजी पूंजी को जो​खिम से बचाने के लिए क्या किया जा सकता है?

निजी क्षेत्र सही काम करना चाहता है, मगर वह नुकसान भी नहीं चाहता। इसलिए मेजबान देश में नियामकीय ढांचा होना चाहिए ताकि निजी निवेश के लिए जो​​खिम कम किया जा सके। हम सरकारों की मदद के लिए नीति आधारित ऋण उपलब्ध कराते हैं ताकि क्षमता निर्माण को बढ़ाव मिल सके। हम विकासशील देशों की मदद करते हैं ताकि विकास संबंधी

परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जा सके। इसलिए वहां निवेश के लायक तमाम परियोजनाएं हो सकती हैं। हमारे पास कई ऐसे उपाय हैं जो निजी पूंजी के लिए बेहतर गारंटी सुनि​श्चित करने में मदद कर सकते हैं। हम वा​णि​ज्यिक जो​खिम के साथ-साथ राजनीतिक जो​खिम के लिए भी गारंटी दे सकते हैं।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एडीबी से कहा है कि कहीं अ​धिक रियायती जलवायु वित्त के साथ भारत की मदद की जाए। किस तरह की फंडिंग भारत आ सकती है?

हम उन देशों की मदद करने की को​शिश कर रहे हैं जो वि​भिन्न संस्थाओं से अनुदान वित्त या रियायती ऋण लेने के लिए तैयार हैं। इसके लिए हमारे पास अतिरिक्त उधारी की गुंजाइश है। किसी देश को दिए जाने वाले ऋण की मात्रा उस देश की सरकार के साथ नीतिगत वार्ता और उसकी क्षमता पर निर्भर करेगी।

भारत एक विशाल देश है और ऋण लेने की उसकी क्षमता पर्याप्त है। मगर हमें यह देखना होगा हम यह सुनि​श्चित करने के लिए क्या कर सकते हैं कि वहां बैंक ऋण के लायक पर्याप्त परियोजनाएं मौजूद हैं।

विश्व बैंक अपने हितधारकों की साझा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए नया दृ​ष्टिकोण अपना रहा है। क्या एडीबी भी ऐसा सोच रहा है?

अधिक से अ​धिक संसाधन जुटाने के अलावा हमने एडीबी में व्यापक पुनर्गठन भी किया है ताकि खुद को कहीं अधिक कुशल बनाया जा सके और लागत बढ़ाए बिना सभी सदस्य देशों को आवश्यक विशेषज्ञता उपलब्ध कराई जा सके।

First Published - October 8, 2023 | 10:09 PM IST

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