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खराब क्वालिटी वाले जूतों का दौर होगा खत्म, 2025 से आएंगे BIS मानक वाले भारतीय साइज के फुटवियर

उद्योग अब इंडियन साइज सिस्टम को अपनाने जा रहा है, जिससे बाजार में भारतीय माप के जूते मिलेंगे।

Last Updated- December 19, 2024 | 12:22 PM IST
Substandard shoes will be controlled, BIS standard Indian size footwear will come from 2025 घटिया जूतों पर लगेगी लगाम, 2025 से आएंगे BIS मानक वाले भारतीय साइज के फुटवियर

Indian footwear industry: देश का फुटवियर उद्योग वर्ष 2025 में पूरी तरह बदलने की तैयारी में हैं। भारतीय फुटवियर बाजार में दो बड़े परिवर्तन होने वाले है। उद्योग अब इंडियन साइज सिस्टम को अपनाने जा रहा है, जिससे बाजार में भारतीय माप के जूते मिलेंगे। इसके साथ ही भारत में घटिया क्वालिटी वाले जूते चप्पलों का दौर भी खत्म होगा, क्योंकि फुटवियर उद्योग में बीआईएस मानक सख्ती से लागू किया जाएगा। उद्योग इन दोनों बदलाव की पूरी तैयारी कर चुका है।

भारत में जूते खरीदने के लिए अब तक जो साइज हम दुकानदार को बताते आ रहे हैं वह यूके द्वारा निर्धारित साइज है। जूतों के बाजार में अभी तक साइज के लिए कोई भारतीय मानक प्रणाली नहीं थी। लेकिन अब देश में स्थानीय मानक प्रणाली से जूतों का साइज तय किया जाएगा। भारतीय फुटवियर कम्पोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय गुप्ता कहते हैं कि पिछले कई सालों से इस पर काम शुरू था, अब कंपनियां भारतीय साइज के जूते बनाने को तैयार है। साल 2025 में भारतीय साइज के जूते बाजार में आ जाएंगे।

भारतीय साइज के जूते बाजार में लाने की जरूरत क्यों पड़ी इस पर जारा फूटवियर के प्रबंध निदेशक शफीउल्ला खान कहते हैं कि भारतीय लोगों के पैर यूरोपीयन या अमेरिकियों की तुलना में अधिक चौड़े पाए गए। अमेरिकी और यूके साइज प्रणालियों के तहत जूतों के साइज संकीर्ण होते हैं। इससे भारतीय लोगों के पांव में जूते बहुत फिट नहीं आते हैं। कई भारतीय खराब फिटिंग वाले या बड़े आकार के जूते पहनते हैं। इससे उन्हें असुविधा भी होती है और चोट लगने के साथ-साथ पैरों के स्वास्थ्य से समझौता भी करना पड़ता है।

एसोसिएशन के मुताबिक 2025 में फुटवियर उद्योग में बीआईएस मानक सख्ती से लागू हो जाएगा। गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (क्यूसीओ) से गुणवत्तापूर्ण फुटवियर उत्पादों का घरेलू उत्पादन सुनिश्चित हो सकेगा और खराब गुणवत्ता वाले उत्पादों के आयात पर भी लगाम लगेगी। इन मानकों में फुटवियर बनाने में इस्तेमाल होने वाले चमड़े, पीवीसी और रबड़ जैसे कच्चे माल के अलावा सोल एवं हील के बारे में भी निर्देश दिए गए हैं। ये मानक रबड़ गम बूट, पीवीसी सैंडल, रबड़ हवाई चप्पल, स्पोर्ट्स शूज और दंगा-रोधी जूते जैसे उत्पादों पर लागू होंगे। कारोबारियों के मुताबिक भारतीय बाजार में चीन से आए सस्ते जूते किसी तरह का मानक पूरा नहीं करते हैं जिन पर लगाम लगेगी और भारतीय कारोबारियों को इससे फायदा होगा।

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भारतीय फुटवियर बाजार का वर्तमान मूल्य 1800 करोड़ डॉलर है, जिसे 2030 तक 2600 करोड़ डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य है। भारत में कुल चमड़ा क्षेत्र का मूल्य 3000 करोड़ डॉलर है, जिसे 5000 करोड़ डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य है। वर्तमान में, 600 करोड़ डॉलर के फुटवियर निर्यात किए जाते हैं, जबकि 1200 डॉलर के जूते घरेलू बाजार में बेचे जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में वृद्धि घरेलू बाजार जितनी नहीं है।

उद्योग को चमड़े और सिंथेटिक सामग्री सहित कच्चे माल के आयात और विशेष रूप से चीन से सस्ते आयात से प्रतिस्पर्धा जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भारत सहित दुनियाभर के बाजारों में बिकने वाले जूतों में 20 फीसदी चमड़े के जूते हैं। स्पोर्ट जूतों की बाजार में हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी हो गई है।

फुटवियर उद्योग में बदलाव को महाराष्ट्र के कारोबारी अपने लिए बेहतरीन मौका मान रहे हैं। राम फैशन एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक नरेश एस भसीन कहते है कि महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में रतवाड़ में एक मेगा लेदर फुटवियर और एक्सेसरीज़ क्लस्टर पार्क 151 एकड़ में स्थापित किया गया है। मेगा लेदर फुटवियर और एक्सेसरीज़ क्लस्टर पार्क से निर्माताओं, आपूर्तिकर्ताओं, डिजाइनरों और कारीगरों को एकीकृत करके चमड़ा उद्योग के सहयोग, नवाचार और विकास के लिए एक केंद्र के रूप में काम करने की उम्मीद है।

महाराष्ट्र वर्तमान में देश में चमड़े की वस्तुओं के सबसे बड़े उत्पादक और निर्यातक में 8वें स्थान पर है। इसके साथ ही राज्य में कुछ और लेदर पार्क तैयार किये जाने वाले हैं जिससे महाराष्ट्र लेदर और फुटवियर में तेजी से आगे आएंगे।

फुटवियर उद्योग की शूटेक प्रदर्शिन में शामिल फुटवियर उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि मुंबई के देवनार में एक लेदर पार्क प्रस्तावित है। प्रस्तावित 17 मंजिला पार्क की एक मंजिल में लेदर मॉल भी खुलेगा, जिसमें चमड़े के बेल्ट, बैग, जूता-चप्पल आदि उत्पाद मिलेंगे। इस परियोजना पर 182 करोड़ 75 लाख रुपये खर्च होने का अनुमान है। 2 एकड़ क्षेत्र में लेदर पार्क बनाया जाएगा। सरकार की मंजूरी के बाद दो साल में निर्माण कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। देवनार में प्रस्तावित लेदर पार्क में धारावी के लगभग 150 चमड़ा कारखानों का पुनर्वसन हो सकेगा। लेदर पार्क में 150 वर्क शॉप होंगे, जिनमें कारीगर विभिन्न उत्पाद बनाएंगे। कारीगरों को कौशल विकास का प्रशिक्षण मुफ्त में दिया जाएगा।

First Published - December 19, 2024 | 12:22 PM IST

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