उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को यह आदेश देने का प्रस्ताव रखा कि उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ (वक्फ बाय यूजर) सहित वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाए, लेकिन केंद्र ने इस सुझाव का विरोध किया और इस तरह के निर्देश से पहले सुनवाई की अपील की। शीर्ष अदालत ने केंद्र से यह भी पूछा कि क्या मुसलमानों को हिंदू धार्मिक न्यासों का हिस्सा बनने की अनुमति दी जाएगी।
पीठ ने कहा, ‘अदालतों द्वारा वक्फ के रूप में घोषित संपत्तियों को वक्फ के रूप में गैर-अधिसूचित नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वे उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ हों या विलेख के माध्यम से। यद्यपि अदालत वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है।’ शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा, ‘पदेन सदस्यों के सिवाय वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए।’
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन के पीठ ने पहले इन याचिकाओं को एक उच्च न्यायालय को भेजने पर विचार किया, लेकिन बाद में कपिल सिब्बल, अभिषेक सिंघवी, राजीव धवन और केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनीं। पीठ ने अभी तक कोई औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया है, लेकिन कहा है कि वह 17 अप्रैल को अपराह्न करीब दो बजे याचिकाओं पर सुनवाई दोबारा शुरू करेगी।
शीर्ष अदालत ने कानून लागू होने के बाद हुई हिंसा पर भी चिंता व्यक्त की और कहा कि जब वह इन मामलों पर गौर कर रही है तो हिंसा की घटनाएं व्यथित करने वाली बात है। प्रधान न्यायाधीश ने आगे एक आदेश पारित करने का प्रस्ताव रखा, जिसमें कहा गया कि पदेन सदस्यों को उनके धर्म की परवाह किए बिना नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन अन्य सदस्यों को मुस्लिम होना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने मेहता से सवाल किया कि ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ की अनुमति कैसे नहीं दी जा सकती, क्योंकि कई लोगों के पास ऐसे वक्फ पंजीकृत कराने के लिए अपेक्षित दस्तावेज नहीं होंगे। ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ से तात्पर्य ऐसी प्रथा से है, जिसमें किसी संपत्ति को धार्मिक या धर्मार्थ बंदोबस्ती (वक्फ) के रूप में मान्यता उसके ऐसे प्रयोजनों के लिए दीर्घकालिक, निर्बाध उपयोग के आधार पर दी जाती है, भले ही मालिक द्वारा वक्फ की कोई औपचारिक, लिखित घोषणा न की गई हो।
पीठ ने कहा, ‘आप उपयोगकर्ता द्वारा ऐसे वक्फ को कैसे पंजीकृत करेंगे? उनके पास कौन से दस्तावेज होंगे? इससे कुछ पूर्ववत हो जाएगा। हां, कुछ दुरुपयोग है, लेकिन वास्तविक भी हैं। मैंने प्रिवी काउंसिल के फैसलों को भी पढ़ा है। उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को मान्यता दी गई है। यदि आप इसे पूर्ववत करते हैं तो यह एक समस्या होगी। विधायिका किसी निर्णय, आदेश या डिक्री को शून्य घोषित नहीं कर सकती। आप केवल आधार ले सकते हैं।’
मेहता ने हालांकि कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग वक्फ अधिनियम के तहत शासित नहीं होना चाहता। पीठ ने इसके बाद मेहता से पूछा, ‘क्या आप यह कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे। इसे खुलकर कहें।’ उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब 100 या 200 साल पहले किसी सार्वजनिक ट्रस्ट को वक्फ घोषित किया जाता था, तो उसे अचानक वक्फ बोर्ड द्वारा अपने अधीन नहीं लिया जा सकता था और अन्यथा घोषित नहीं किया जा सकता था।
पीठ ने कहा, ‘आप अतीत को दोबारा नहीं लिख सकते।’मेहता ने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति ने 38 बैठकें कीं और संसद के दोनों सदनों द्वारा इसके पारित होने से पहले 98.2 लाख ज्ञापनों की पड़ताल की। प्रधान न्यायाधीश ने सुनवाई के शुरू में कहा, ‘दो पहलू हैं जिन पर हम दोनों पक्षों से बात करना चाहते हैं। सबसे पहले, क्या हमें इस पर विचार करना चाहिए या इसे उच्च न्यायालय को सौंप देना चाहिए? दूसरा, संक्षेप में बताएं कि आप वास्तव में क्या आग्रह कर रहे हैं और क्या तर्क देना चाहते हैं? हम यह नहीं कह रहे हैं कि कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने और निर्णय लेने में उच्चतम न्यायालय पर कोई रोक है।’