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Electoral Bond: क्या है चुनावी बॉन्ड? पार्टियों को कैसे मिली कितनी रकम? क्यों सुप्रीम कोर्ट ने बताया असंवैधानिक? जानिये सबकुछ

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने चुनावी बॉन्ड को जारी करने वाले बैंक SBI को तत्काल प्रभाव से इसपर रोक लगाने का भी निर्देश दिया।

Last Updated- February 16, 2024 | 12:23 AM IST
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Electoral Bonds Unconstitutional: सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी 15 फरवरी को मोदी सरकार की उस योजना को असंवैधानिक करार दिया है जिसे वह साल 2018 में लेकर आई थी और जिसके जरिये राजनीतिक तरफ से बिना किसी के नाम को उजागर किए डोनेशन के नाम पर पैसे ले सकती थीं। इसके साथ ही देश की टॉप कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को तुरंत प्रभाव से कोई भी नया चुनावी बॉन्ड जारी न करने का निर्देश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने आज के फैसले में चुनावी बॉन्ड को लेकर SBI को और भी निर्देश दिए हैं और बॉन्ड की वैधानिकता पर कई सवाल उठाए हैं। इस बीच आइये जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा चुनावी बॉन्ड के बारे में और क्या था SBI के लिए निर्देश? लेकिन, इससे पहले ये जानना जरूरी है कि चुनावी बॉन्ड होता क्या है? केंद्र सरकार इसे क्यों लेकर आई थी और मोदी सरकार की इसे लाने के पीछे क्या सोच थी?

क्या है चुनावी बॉन्ड?

साल 2017 के यूनियन बजट में सरकार चुनावी बॉन्ड लेकर आई थी, उस समय देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली थे। इसके बाद, कई विरोधों के बावजूद सरकार ने इसे 2 जनवरी, 2018 को नोटिफाई कर दिया औऱ राजनीतिक पार्टियों को डोनेशन प्राप्त करने के लिए नकद के बजाय बॉन्ड का ऑप्शन दे दिया।

सरकार का कहना था कि चुनावी बॉन्ड से ज्यादा पारदर्शिता सुनिश्चित हो सकेगी क्योंकि जो भी रकम राजनीतिक पार्टियों को मिलेगी, वह बैंक खाते से होकर आएगी और काले धन में कमी आएगी।

इस योजना के तहत यह भी नियम है कि जो भी पैसा राजनीतिक पार्टियों को जा रहा है और जो भी व्यक्ति या संस्था उस रकम को भेज रही है उसकी जानकारी केवल SBI को रहेगी। इसके अलावा, कोई भी व्यक्ति या पार्टी इसकी जानकारी नहीं प्राप्त कर सकेगी।

चुनावी बॉन्ड के जरिये कैसे पार्टियों को मिलता है पैसा?

अगर आप किसी राजनीतिक पार्टी को पैसे दान देना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको कुछ चुनिंदा और केवल भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की ब्रांच जाना पड़ेगा। वहां आप बैंक को पैसा देंगे और जिस पार्टी को पैसा देना होगा उसकी जानकारी देंगे। इसके बाद SBI आपको पैसे लेकर उसकी जगह उतनी ही रकम की एक बॉन्ड जारी कर देगी।

अब आप वह बॉन्ड लेकर उस पार्टी के पास जाएंगे और वह बॉन्ड जमा कर देंगे। इसके बाद वह पार्टी उस रकम को 15 दिन के अंदर-अंदर भुना लेगी। अगर यह टाइमलिमिट पार हो जाती है तो वह पैसा पार्टी के खाते में नहीं जाएगा बल्कि पूरी रकम प्रधानमंत्री राहत कोष (Prime Minister Relief Fund) के खाते में चला जाता है।

चुनावी बॉन्ड के जरिये कितनी रकम की जा सकती है डोनेट?

वित्त मंत्रालय की आर्थिक मामलों के विभाग की तरफ से जारी नोटिस के मुताबिक, चुनावी बॉन्ड के जरिये कितनी भी रकम डोनेट की जा सकती है, उसे लेकर कोई लिमिट नहीं लगाई गई है। हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इसके आप अपनी पूरी मनमर्जी से पैसे नहीं दान दे सकते। यह रकम कुछ निश्चित गुणक में ही दी जा सकती है, जैसे- एक हजार, दस हजार, एक लाख, दस लाख, एक करोड़, दस करोड़…।

इसके जरिये किए जाने वाले डोनेशन में बिलकुल भी टैक्स नहीं लगता है, यानी यह बिलकुल टैक्स फ्री होता है।

कौन सी पार्टियां ले सकती है चुनावी बॉन्ड के जरिये पैसा?

Electoral Bond Scheme के जरिये भारत की सभी पार्टियां डोनेशन लेने के लिए पात्र नहीं होती हैं। इस योजना के तहत वे पार्टियां, जो Representation of the People Act, 1951 के Section 29A के तहत रजिस्टर्ड हैं और उन्हें लोकसभा या विधानसभा के चुनाव में कम से कम 1 फीसदी वोट मिले हों, वे ही इस बॉन्ड के जरिये पैसे ले सकेंगी।

चुनावी बॉन्ड के जरिये अब तक किस पार्टी को मिली कितनी रकम?

भारतीय चुनाव आयोग के डेटा के मुताबिक, साल 2022-23 में सबसे ज्यादा डोनेशन पाने वाली पार्टी भाजपा रही। भाजपा (BJP) को इस दौरान करीब 1294.14 करोड़ रुपये की डोनेशन प्राप्त हुई। वहीं, दूसरे नंबर पर रहने वाली कांग्रेस को करीब 171.02 करोड़ रुपये मिले। इसके अलावा आम आदमी पार्टी (AAP) को 45.45 करोड़ रुपये मिले।

सुप्रीम कोर्ट के 15 फरवरी के फैसले से पहले केंद्र ने 5 फरवरी को लोकसभा में बजट सेशन के दौरान बताया था कि अब तक SBI के जरिये 30 किश्तों में 16,518 करोड़ रुपये के चुनावी बांड बेचे गए हैं।

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में, वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा, ‘भारतीय स्टेट बैंक से खरीदे गए चुनावी बांड (फेड- I से फेज-30) का कुल मूल्य करीब 16,518 करोड़ रुपये है।’

कैसे शुरू हुआ विवाद?

साल 2018 में जब ये योजना लागू की गई तो उसके पहले कुछ कानूनी बदलाव भी किए गए, जैसे कंपनी एक्ट, इनकम टैक्स एक्ट, विदेशों से आने वाली रकम के लिए कानून- फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (FCRA) औऱ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट।

योजना के लागू होते ही कई राजनीतिक पार्टियां चुनावी बॉन्ड की पारदर्शिता पर सवाल उठाने लगीं जिसके बाद, कांग्रेस नेता डॉ. जया ठाकुर, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-CPIM) और NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना को यह तर्क देकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी कि इसके जरिये राजनीतिक पार्टियां अनगिनत पैसा कमा सकती हैं और इसके अलावा, यह योजना सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन करती है, जो कि भारतीय संविधान के मुताबिक, मूल अधिकार का हनन है। बता दें कि ADR चुनाव से संबंधित कई तरह के आंकड़े समय-समय पर पेश करता रहता है जैसे- किस पार्टी को कितना पैसा मिला आदि।

दूसरी ओर, सरकार ने इस योजना को पारदर्शी बताते हुए बचाव किया और कहा कि राजनीतिक डोनेशन में गुमनामी की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अन्य राजनीतिक दलों से बदले की कोई आशंका न हो।

मोदी सरकार ने यह भी तर्क दिया गया कि यह योजना सुनिश्चित करती है कि ‘सफेद’ धन (White Money) का उपयोग उचित बैंकिंग चैनलों के माध्यम से राजनीतिक फंडिंग के लिए किया जाए।

इसके बाद साल 2023 में 31 अक्टूबर से लेकर 2 नवंबर तक इस मामले की सुनवाई हुई। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की संवैधानिक पीठ ने 2 नवंबर को इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया और 15 फरवरी, 2024 को इसे अवैध करार दे दिया।

चुनावी बॉन्ड क्यों असंवैधानिक?

आज यानी 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि चुनावी बॉन्ड की यह योजना सूचना के अधिकार (RTI) का उल्लंघन करती है और इससे बदले की भावना पैदा हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को ऑर्टिकल 19(1)(a) का उल्लंघन माना।

टॉप कोर्ट का कहना है कि चुनावी बॉन्ड योजना और उससे पहले जनप्रतिनिधित्व कानून, कंपनी अ​धिनियम तथा इनकम टैक्स कानून में किए गए संशोधन नागरिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। ये संशोधन संविधान के ऑर्टिकल 19(1)(a) के तहत मतदाताओं को मिले उस अधिकार का उल्लंघन करते हैं, जिसके मुताबिक राजनीतिक दलों को मिलने वाली डोनेशन की जानकारी वोटर्स को पता होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना काले धन पर अंकुश लगाने वाली एकमात्र योजना नहीं है। इसके अलावा, अन्य विकल्प भी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि Electoral Bonds के माध्यम से काले धन के मुद्दे से निपटने का केंद्र का औचित्य उचित नहीं है।

टॉप कोर्ट ने यह भी कहा कि कॉरपोरेट राजनीतिक फंडिंग की परमिशन देने वाली ऑर्टिकल 182 कंपनी अधिनियम में संशोधन भी असंवैधानिक और साफ तौर पर मनमानी है।

सुप्रीम कोर्ट का SBI को भी निर्देश

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने चुनावी बॉन्ड को जारी करने वाले बैंक यानी SBI को इसे जारी करने पर तुरंत रोक लगाने का भी निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने बैंक से यह भी निर्देश दिया कि SBI 12 अप्रैल, 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉन्डों की पूरी डिटेल 6 मार्च तक निर्वाचन आयोग को सौंपे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो डोनेशन बॉन्ड के रूप में पार्टियों को सौंपे जा चुके हैं, लेकिन पार्टी ने उन्हें अभी कैश में नहीं बदलवाया है उसे बैंक को वापस कर दिए जाएं और वह पैसा फिर से उन लोगों के खाते में डाल दिया जाए, जिन्होंने रकम दान दी थी।

चुनाव आयोग जारी करेगा डिटेल

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 31 मार्च, 2024 तक चुनाव आयोग अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर चुनावी बाॉन्ड की डिटेल जारी करेगा।

 

First Published - February 15, 2024 | 5:54 PM IST

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