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Assembly elections : कर्नाटक भले ही गरीब राज्य नहीं है, पर मुफ्त चुनावी वादे नहीं कर सकता

Last Updated- April 02, 2023 | 11:24 PM IST
Free food grains scheme will be heavy on the exchequer

कर्नाटक में 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दल आम जनता को तरह-तरह की रियायतें देने का वादा कर रहे हैं। हालांकि, राज्य आर्थिक रूप से इतना समृद्ध है कि वह राजनीतिक दलों के इन वादों को अमलीजामा पहना सकता है, लेकिन इसके व्यय में भी लगातार वृद्धि जारी है। इससे सरकार के पास मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की गुंजाइश भी काफी कम होती दिख रही है।

राजनीतिक दलों द्वारा किए गए तमाम वादों में कांग्रेस ने ऐलान किया है कि अगर वो सत्ता में आती है तो आम लोगों को 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देगी। इसके अलावा गरीब परिवारों को दस किलोग्राम चावल, स्नातक किए हुए बेरोजगारों को हर महीने 3,000 रुपये और बेरोजगार डिप्लोमा धारकों को 1,500 रुपये मासिक भत्ता दो साल तक देगी।

जनता दल (सेक्युलर) ने रैयत बंधु कार्यक्रम के तहत किसानों को 10 एकड़ तक जमीन के लिए बीज और खाद खरीदने के लिए 10,000 रुपये प्रति एकड़ की सहायता करेगी। जबकि कर्नाटक में पहली बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी (आप) ने घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया है। साथ ही पार्टी ने प्रदेश के छात्रों के लिए सिटी बस की मुफ्त यात्रा, मोहल्ला क्लिनिक और नौकरी लग जाने तक बेरोजगारों को 3,000 रुपये देने की बात कह रही है।

कर्नाटक गरीब राज्य नहीं है। हाल के वर्षों में इसका अपना कर राजस्व (ओटीआर) इसकी कुल राजस्व प्राप्तियों का 70 फीसदी से ज्यादा है और मौजूदा वित्त वर्ष में भी यह लगभग 73 फीसदी रह सकता है। प्रदेश का राजस्व घाटा भी अधिक नहीं है। कहा जा रहा है कि इस वित्त वर्ष के लिए इसमें 0.02 फीसदी का एक छोटा राजस्व अधिशेष भी होने का अनुमान है।

हालांकि, वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान और प्रशासनिक व्यय जैसी इसकी देनदारियों वित्त वर्ष 24 में 60 फीसदी रहने का अनुमान है। जो इससे पहले वित्त वर्ष 23 में 55 फीसदी थी और उससे पहले वित्त वर्ष 2021-22 में 45 फीसदी थी।

राज्य अगले वित्त वर्ष से सातवां वेतनमान भी लागू करने जा रहा है। साल 2023-24 के बजट में कहा गया था कि सरकारी कर्मियों को सातवें वेतनमान का लाभ देने से आगामी वर्षों में कर्नाटक सरकार के वेतन और पेंशन मद की देनदारियों में भारी वृद्धि होगी।

इसमें कहा गया था कि फिटमेंट फैक्टर के आधार पर सातवें वेतनमान को लागू करने के पहले साल के लिए अतिरिक्त वित्तीय भार 12,000 करोड़ रुपये से 18,000 करोड़ रुपये के बीच होगा।

बजट पत्र के अनुसार स्थानीय निकायों को सब्सिडी, वित्तीय सहायता जैसे खर्च अगर इसमें जुड़ते हैं तो इस मद के तहत कुल खर्च 2023-24 में राजस्व प्राप्तियों का 92 फीसदी हो सकता है।

इससे पता चलता है कि राज्य का राजस्व इतना नहीं है कि राजनीतिक दलों द्वारा की गई मुफ्त रेवड़ियों को पूरा कर सके। बशर्ते राजस्व घाटा के साथ-साथ राजकोषीय घाटा बढ़ाया जाए। अभी राजकोषीय घाटा सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के तीन फीसदी के अंदर है। नहीं तो, इसे अपने पूंजीगत व्यय को कम करना होगा। वित्त वर्ष 2023-24 में इसके 58,328 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है, जो कि 2.25 लाख करोड़ रुपये के कुल व्यय की एक-चौथाई हिस्से से थोड़ा अधिक है।

प्रदेश सरकार ने एक अपने अधिकारियों की एक टीम को राजस्थान भी भेजा है जो पुरानी पेंशन प्रणाली (ओपीएस) का अध्ययन करेगी। अगर राजनीतिक दल एक-दूसरे से भिड़ने के लिए ओपीएस वापस लाने की राजनीतिक करते हैं तो मुफ्त में रेवड़ियां बांटने में और परेशानी हो सकती है। हालांकि, इसके तुरंत होने की उम्मीद नहीं है।

राज्य की आर्थिक वृद्धि देश की जीडीपी से मेल खा रही है और हाल के वर्षों में इसे पार भी कर गई है। उदाहरण के लिए, राज्य की अर्थव्यवस्था बढ़कर 9.5 फीसदी हो गई है, जो राष्ट्रीय औसत 9.1 फीसदी से थोड़ा ज्यादा है।

प्रदेश की बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से थोड़ी कम है। उदाहरण के लिए, साल 2021-22 में राष्ट्रीय औसत 4.1 फीसदी था, जबकि प्रदेश की दर 3.2 फीसदी रही। वर्ष 2018-19 से यही प्रवृत्ति जारी है।

राज्य की खुदरा मूल्य महंगाई दर भी राष्ट्रीय औसत से मेल खाती है। लेकिन, पहले यह हाल के महीनों में बाद की तुलना में थोड़ा कम था। इस वित्त वर्ष के पहले 11 महीनों में देश में महंगाई दर 6.7 फीसदी थी। यह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 6 फीसदी के उच्चतम स्तर से ज्यादा थी मगर कर्नाटक में यह 5.5 फीसदी से थोड़ी कम थी। हालांकि, फरवरी में कर्नाटक में महंगाई दर 6.03 फीसदी थी जो आरबीआई के उच्चतम स्तर से अधिक थी। फिर भी यह देश भर के 6.44 फीसदी से कम थी।

First Published - April 2, 2023 | 11:23 PM IST

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