facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

कोविड के बाद राज्यों की वित्तीय सेहत में सुधार, फिस्कल डेफिसिट घटा

Last Updated- January 17, 2023 | 7:59 AM IST
fiscal deficit

वित्त वर्ष 2020-21 में कोविड-19 महामारी की मंदी के बाद राज्य सरकारों की राजकोषीय सेहत बेहतर हुई है। सोमवार को राज्यों के वित्त पर जारी भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में यह सामने आया है।

रिजर्व बैंक ने कहा है कि राज्यों की वित्तीय सेहत में सुधार की वजह व्यापक आधार पर आर्थिक रिकवरी और राजस्व संग्रह में निरंतर सुधार है। यह रिपोर्ट केंद्रीय बैंक के आर्थिक और नीतिगत शोध विभाग की राज्य शाखा ने तैयार की है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘राज्यों का सकल राजकोषीय घाटा (जीएफडी) 2022-23 में घटकर 3.4 प्रतिशत रहने की संभावना है।’ रिपोर्ट में कहा गया है, ‘राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति में 2021-22 से सुधार हो रहा है, जिसका पता कम घाटे के संकेतकों (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में सकल राजकोषीय घाटा, राजस्व घाटा, प्राथमिक घाटा) से पता चलता है। इसकी वजह से ज्यादा पूंजीगत व्यय का मौका मिला है।’

रिपोर्ट में पाया गया है कि महामारी की पहली दो लहरों में राज्य सरकारों के सामने वित्तीय प्रबंधन की गंभीर चुनौती थी, क्योंकि राजस्व में कमी आई थी, वहीं उसके बाद कोविड के दौरान राज्यों के वित्त पर कम असर पड़ा है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इसी के मुताबिक राज्यों ने अपना सकल राजकोषीय घाटा कम करके वित्तीय दायित्व कानून (एफआरएल) के लक्ष्य से कम किया है, जो 2021-22 में जीडीपी का 3 प्रतिशत था। 2022-23 में यह 3.4 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।’

रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यों द्वारा पूंजीगत व्यय को जोर देने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों के लिए वित्तीय सहायता की योजना पेश की थी। वहीं राज्य सरकारों का जीडीपी के अनुपात में पूंजीगत आवंटन चालू वित्त वर्ष में बढ़कर 2.9 प्रतिशत हो गया है, जो वित्त वर्ष 2021-22 में 2.3 प्रतिशत था।

बहरहाल रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सीएजी के आंकड़ों से संकेत मिलता है कि राज्य सरकारों का पूंजीगत व्यय चालू वित्त वर्ष के पहले 6 महीने में 7 प्रतिशत की दर से बढ़ा है, जबकि केंद्र सरकार की वृद्धि दर 50 प्रतिशत रही है। इसलिए राज्यों को दूसरी छमाही में निवेश बढ़ाने की जरूरत है और इस तरह की कवायद को कर और गैर कर राजस्व संग्रह में तेज बढ़ोतरी से समर्थन मिला है।

कर्ज के मोर्चे पर देखें तो रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान राज्यों का कर्ज घटकर जीडीपी के 29.5 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है, जो 2021-22 में 31.1 प्रतिशत था। हालांकि यह राजकोषीय दायित्व और बजट प्रबंधन समीक्षा समिति 2018 की 20 प्रतिशत रखने की सिफारिश की तुलना में ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसे देखते हुए राज्यों को कर्ज के समेकन पर जोर देने की जरूरत है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘राज्यों की बकाया देनदारी महामारी के उच्च स्तर की तुलना में कम हुई है। वहीं राज्यों के व्यक्तिगत स्तर पर कर्ज के समेकन पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत महसूस होती है।’

रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष में राज्यों की कुल देनदारी में बाजार उधारी की हिस्सेदारी बढ़ने की उम्मीद है। इसके अलावा राज्यो का केंद्र से कर्ज भी बढ़ेगा क्योंकि केंद्र ने पूंजीगत व्यय में राज्यों की विशेष सहायता की योजना के तहत 50 साल के लिए ब्याज मुक्त कर्ज देने की पेशकश की है।

First Published - January 17, 2023 | 7:58 AM IST

संबंधित पोस्ट