भारत ने मंगलवार को कहा कि वह सीमा मुद्दे का निष्पक्ष और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान निकालने के लिए चीन के साथ संपर्क में बने रहने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन संबंध वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की मर्यादा का सख्ती से सम्मान करने और समझौतों का पालन करने पर निर्भर होंगे।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लोक सभा में भारत-चीन संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और गलवान घाटी की झड़प के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए कहा कि भारत और चीन के संबंध 2020 से असामान्य रहे, जब चीन की कार्रवाइयों की वजह से सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बाधित हुई। जयशंकर ने कहा कि चरण-दर-चरण प्रक्रिया के माध्यम से पूर्वी लद्दाख में सैनिकों की वापसी का काम संपन्न हो गया है, जो अभी देपसांग और डेमचोक में पूरी तरह संपन्न होना है।
विदेश मंत्री के अनुसार, भारत इस बात को लेकर बहुत स्पष्ट था कि सभी परिस्थितियों में तीन प्रमुख सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए। उन्होंने तीनों सिद्धांतों को समझाते हुए कहा, ‘दोनों पक्षों को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का सख्ती से सम्मान और पालन करना चाहिए, किसी भी पक्ष को यथास्थिति बदलने का एकतरफा प्रयास नहीं करना चाहिए और अतीत में हुए समझौतों और समझ का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए।’
जयशंकर ने कहा, ‘यह भी स्पष्ट है कि हमारे हालिया अनुभवों के आलोक में सीमावर्ती क्षेत्रों के प्रबंधन पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होगी।’ उन्होंने कहा, ‘हमारे संबंध कई क्षेत्रों में आगे बढ़े हैं, लेकिन हाल की घटनाओं से स्पष्ट रूप से नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं। हम स्पष्ट हैं कि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बनाए रखना हमारे संबंधों के विकास की बुनियादी शर्त है।’
जयशंकर ने कहा, ‘सतत कूटनीतिक साझेदारी को दर्शाने वाले हालिया घटनाक्रम ने भारत-चीन संबंधों को कुछ सुधार की दिशा में बढ़ाया है।’ उनका कहना था, ‘हम चीन के साथ इस दिशा में काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि सीमा मुद्दे पर समाधान के लिए निष्पक्ष और परस्पर स्वीकार्य रूपरेखा पर पहुंचें।’ उन्होंने कहा, ‘आने वाले दिनों में हम सीमा क्षेत्रों में तनाव कम करने के साथ-साथ अपनी गतिविधियों के प्रभावी प्रबंधन पर भी चर्चा करेंगे।’
भारत और चीन इस साल अक्टूबर में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गश्त के लिए एक समझौते पर सहमत हुए थे। जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद भारत और चीन के बीच संबंध निचले स्तर पर पहुंच गए थे। यह झड़प पिछले कुछ दशकों में दोनों पक्षों के बीच हुई सबसे भीषण सैन्य झड़प थी।
विदेश मंत्री के जवाब के बाद कांग्रेस सदस्य सदन में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को स्पष्टीकरण मांगने की अनुमति देने की मांग करने लगे। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इसकी अनुमति नहीं दी। इस दौरान कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा समेत विपक्षी दल के अन्य सदस्य अपने स्थान पर खड़े होकर विरोध जताते हुए देखे गए। बिरला ने कहा कि नियम 372 के तहत अध्यक्ष की अनुमति से किसी मंत्री द्वारा किसी विषय पर सदन में वक्तव्य दिया जा सकता है जिस पर कोई प्रश्न नहीं पूछा जा सकता।
कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा कि संसदीय कार्य प्रक्रिया में नेता प्रतिपक्ष की बड़ी भूमिका है और उन्हें भी प्रधानमंत्री की तरह ही बोलने का अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘चीन का मुद्दा सबके हित से जुड़ा है। यदि नेता प्रतिपक्ष कोई सुझाव देना चाहते हैं तो क्या आपत्ति है।’ भाजपा सदस्य निशिकांत दुबे ने संसद की कार्य प्रक्रियाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि विपक्ष के नेता सदन के अंदर और बाहर सरकार की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन विदेश में दलगत राजनीति के तहत ऐसा नहीं कर सकते। इस पर बिरला ने कहा कि सदन के नेता और नेता प्रतिपक्ष दोनों पर ही टिप्पणी करने से बचना चाहिए।