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भागवत का ताजा बयान और मोदी के कदम का अनुमान

भाजपा में वंशवादी उत्तराधिकार की व्यवस्था नहीं है। युवा प्रतिभाओं को पहचानने और सशक्त बनाने की प्रक्रिया को भाजपा अध्यक्षों के चयन में और स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

Last Updated- July 13, 2025 | 10:40 PM IST
Bhagwat's concern over declining fertility rate, BJP's support, opposition raised questions of resources घटती प्रजनन दर पर भागवत की चिंता, भाजपा का समर्थन, विपक्ष ने उठाए संसाधनों के सवाल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख यानी सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि 75 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद नेताओं को सेवानिवृत्त होने और युवा सहयोगियों के लिए स्थान बनाने के बारे में सोचना चाहिए। उनके इस बयान को इस तरह नहीं देखा जाना चाहिए कि उन्होंने कुछ गलत या अजीब कह दिया है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और आरएसएस के बीच के रिश्तों की बात करें तो सावधानी बरतनी आवश्यक है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी हमेशा अपवाद रहेंगे। भागवत के 75 वर्ष की आयु पूरी करने के छह दिन बाद यानी 17 सितंबर को मोदी भी 75 वर्ष के हो जाएंगे। ऐसे में यह सोचना कि भागवत का इशारा मोदी की ओर है, कुछ ज्यादा हो जाएगा। बहरहाल सरसंघचालक को कभी हल्के में नहीं लिया जा सकता। इस मामले में भागवत ने मराठी में भाषण देते हुए केवल 75 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्ति वाली बात हिंदी में कही। यहां जुबान फिसलने जैसी कोई बात नहीं थी। न ही गलत व्याख्या जैसी।

जो लोग राष्ट्रीय राजनीति पर नजर रखते हैं, मैं अनुमान लगा सकता हूं कि वे तत्काल क्या प्रश्न कर सकते हैं। वे मुझे 2005 में आरएसएस प्रमुख केएस सुदर्शन के दो भाग में मेरे द्वारा लिए साक्षात्कार की याद दिला सकते हैं। उन्होंने उस समय अटल बिहारी वाजपेयी (80 वर्ष) और लाल कृष्ण आडवाणी (77 वर्ष) से कहा था कि वे युवाओं के लिए जगह बनाएं। उन्होंने वाजपेयी के दामाद, करीबी सहयोगी ब्रजेश मिश्रा और उनकी काम करने की शैली पर भी हमले किए। जब मैंने उन्हें याद दिलाया कि वाजपेयी ने अपनी सेवानिवृत्ति की अटकलों को ‘न टायर्ड, न रिटायर्ड’ कहकर खारिज किया है तो उन्होंने और तीखी प्रतिक्रिया दी थी।

चूंकि वाजपेयी और आडवाणी की जोड़ी उस समय भाजपा पर बहुत हद तक नियंत्रण रखे हुए थी। उन्हें पार्टी के संस्थापकों के रूप में सम्मान हासिल था और उस समय उनकी जगह लेने वाला भी कोई सामने नहीं था। यही वजह थी कि सुदर्शन को आलोचना का सामना करना पड़ा था। हालांकि यह आलोचना भी कानाफूसी के रूप में ही नजर आई।  दरअसल एक साल पहले ही पार्टी आम चुनाव में हारी थी और पार्टी उस समय उत्तराधिकार की लड़ाई में नहीं उलझ सकती थी। वह जानते थे कि वह क्या कर रहे थे और समय के साथ उनकी गलती साबित भी हुई।

इसके बाद ही पार्टी में संभावित उत्तराधिकारियों की एक पूरी कतार नजर आने लगी। राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नितिन गडकरी और सबसे उल्लेखनीय अहमदाबाद में नरेंद्र मोदी। एक तरह से उन्होंने भाजपा के भीतर पार्टी नेतृत्व के लिए अमेरिकी प्राइमरी शैली की प्रतिस्पर्धा शुरू की। मोदी ने 2012 में तीसरी बार गुजरात चुनाव जीतने के साथ ही इसे जीत लिया था। आप भाजपा और आरएसएस को पसंद करें या नहीं लेकिन आपको यह मानना होगा कि भारतीय राजनीति में सबसे मजबूत और बेहतर मानव संसाधन व्यवस्था उनके पास है।

यह कहना विषयांतर होगा लेकिन यह कहना महत्त्वपूर्ण है कि देश के राजनीतिक इतिहास के सभी दलों में केवल भाजपा ही ऐसा है जिसमें सबसे कम बगावत या विभाजन देखने को मिले हैं। विचारधारात्मक जुड़ाव ही उन सभी को एक छतरी के तले बनाए रखता हैै। पार्टी छोड़कर जाने वाले कई नेता वापस लौट आए। उदाहरण के लिए कल्याण सिंह और येदियुरप्पा। बाहर जाने वाले अन्य नेता मसलन शंकर सिंह वाघेला, बलराज मधोक आदि अप्रासंगिक हो गए। उन्हीं दशकों में कांग्रेस में कई बार विभाजन हुए। उससे अलग होकर इतनी पार्टियां बनीं कि लगा मानों उनके संक्षिप्त नाम के लिए वर्णमाला के अक्षर तक अपर्याप्त हो जाएंगे। जनता दल, समाजवादी और लोकदल आदि सभी का यही हाल हुआ लेकिन भाजपा के साथ ऐसा नहीं हुआ।

भाजपा में कम से कम शीर्ष पर कोई वंशवादी उत्तराधिकार नहीं था। यह सही है कि पार्टी में आज भी कई संस्थापकों और वरिष्ठों की संतानें प्रमुख पदों पर हैं लेकिन उत्तराधिकार कभी भी सीधा-सपाट नहीं रहा। यह सत्ता के हस्तांतरण से अधिक किसी संतान को ‘समायोजित’ करने का मामला था।

इसकी जड़ें वाजपेयी-आडवाणी के युग में तलाशी जा सकती हैं। उन्होंने अत्यंत युवा मुख्यमंत्री चुने: वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह, नरेंद्र मोदी, इन सभी की औसत आयु 49 वर्ष थी। भाजपा के अध्यक्षों को देखें तो युवाओं के चयन की बात और अधिक स्पष्ट होती है। 2002 में वेंकैया नायडू 53 साल की उम्र में पार्टी अध्यक्ष बने। 2005 में राजनाथ सिंह 54 की उम्र में, 2009 में नितिन गडकरी 48 साल में और 2014 में अमित शाह केवल 49 साल की उम्र में पार्टी के अध्यक्ष बने।

इसके विपरीत इस पूरी अवधि में सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनी रहीं। बाद में राहुल गांधी और फिर मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष बने जो 80 वर्ष के हैं। इस बीच कांग्रेस की युवा प्रतिभाएं तितर-बितर हो गईं। कुछ ने हताश होकर भाजपा की सदस्यता ले ली। दूसरे पार्टी में बने रहे लेकिन उनकी हताशा और बढ़ गई। हम दोनों दलों के वैचारिक विरोध पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं जबकि हमें उनके मानव संसाधन संबंधी व्यवहार पर तवज्जो देनी चाहिए।

2014 के बाद भी भाजपा में इस सिद्धांत का पालन किया गया। जे पी नड्‌डा 59 वर्ष की आयु में पार्टी के अध्यक्ष बने। नए मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ (उप्र), भजन लाल शर्मा (राजस्थान), मोहन यादव (मप्र), विष्णुदेव साय, मोहन चरण मांझी, विप्लव देव और हिमंत विश्व शर्मा, मनोहर लाल खट्‌टर, देवेंद्र फडणवीस, प्रमोद सावंत, पुष्कर सिंह धामी, रेखा गुप्ता, शपथ ग्रहण के समय इन सभी की औसत आयु 51 वर्ष थी। कांग्रेस ने तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश में युवा नेतृत्व को अवसर दिया लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण राज्य कर्नाटक में पार्टी सिद्धरमैया जैसे पुराने नेता को बनाए हुए है।

सबसे अधिक ध्यान देने लायक तथ्य यह है कि भाजपा का वैचारिक गुरु माना जाने वाला आरएसएस अपनी सलाह पर ध्यान देता रहा है। सबसे अधिक उम्र में सरसंघचालक के रूप में काम करने वालों में सुदर्शन (2009), राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया (2000) और मधुकर दत्तात्रेय ‘बालासाहेब’ देवरस (1994) रहे। अधिकतम आयु 78 वर्ष की रही।

संघ के संस्थापकों की बात करें तो केशव बलिराम हेडगेवार और एमएस गोलवलकर 1940 और 1973 में क्रमश: 51 और 67 वर्ष की आयु में पद पर रहते हुए ही गुजर गए। ये सभी कम उम्र में सरसंघचालक बने। वर्तमान सरसंघचालक के साथ भी ऐसा ही है।

तथ्य यह है कि तमाम अफवाहों और अटकलों के बावजूद भाजपा के भीतर से किसी ने 75 वर्ष की सेवानिवृत्ति आयु की बात नहीं की। केवल आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और अन्य नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेजते समय ऐसी कानाफूसी सुनी गई थी। इसके साथ ही कुछ मंत्री पद पर बने भी रहे जिनमें कलराज मिश्र और नजमा हेपतुल्ला शामिल हैं। आगे चलकर इन्हें राज्यपाल बना दिया गया। हालिया लोक सभा चुनावों में हेमा मालिनी को मथुरा से टिकट दिया गया हालांकि वह 75 वर्ष की आयु पार कर चुकी हैं। शायद ऐसा हमें यह याद दिलाने के लिए किया गया कि ऐसा कोई नियम नहीं है। आनंदीबेन पटेल ने 2016 में गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हुए कहा था कि वह 75 वर्ष की हो चुकी हैं। जाहिर है वह मोदी के लिए नजीर नहीं बन सकता।

11 सितंबर की तारीख पर नजर रखनी होगी। भागवत उसी दिन 75 वर्ष के होंगे। अगर वह अपनी ही सलाह पर अमल करते हुए सेवानिवृत्त होने का तय करते हैं तो कम से कम भाजपा में मोदी को लेकर चर्चा शुरू होगी। क्या कोई चुनौती सामने आएगी? क्या कोई 2009 के बाद की प्राइमरी जैसी प्रक्रिया चाहेगा? यह असंभव तो नहीं लेकिन मुश्किल जरूर है।

जैसे-जैसे 2028 का अंत करीब आएगा, भाजपा के महत्त्वाकांक्षी नेताओं में से कुछ का धैर्य चुकने लगेगा। परंतु कोई दावा करने की हिम्मत नहीं करेगा। मोदी इतने ताकतवर हैं कि वह स्वयं फैसला कर सकते हैं कि वह कब तक पद पर रहेंगे। यकीनी तौर पर वह 2029 का चुनाव लड़ना चाहेंगे। उस समय वह केवल 79 वर्ष होंगे यानी जितनी डॉनल्ड ट्रंप की वर्तमान आयु है। बाकी नेताओं को मोदी के निर्णय या संकेत की प्रतीक्षा करनी होगी। भले ही पार्टी के भीतर उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया गोपनीय ढंग से शुरू भी हो गई हो।

 

First Published - July 13, 2025 | 10:40 PM IST

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