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Lok Sabha Elections: नई सरकार की क्या हों प्राथमिकताएं

देश में आय की असमानता का आकलन बहुत विभाजित है। खासतौर पर हाल के वर्षों में ऐसा राजनीतिक वजहों तथा डेटा की कमी की वजह से हुआ।

Last Updated- May 16, 2024 | 10:55 PM IST
An agenda for next government रोजगार और साझी समृद्धि की दिशा में काम जरूरी

केंद्र में बनने वाली नई सरकार को कुछ ऐसी नीतियों का निर्माण और उन पर अमल करना चाहिए जो देश को समतापूर्ण वृद्धि प्राप्त करने में मददगार साबित हों, बता रहे हैं नितिन देसाई

चु नाव में चाहे जिसकी जीत हो, नई सरकार का प्राथमिक ध्यान इस बात पर केंद्रित होगा कि चुनाव घोषणापत्र में किए गए वादों पर किस तरह अमल किया जाए। इसमें बजट में घोषित कल्याण योजनाओं के लिए फंडिग भी शामिल होगी जिसे वर्ष के मध्य में पेश किया जाएगा।

बहरहाल, वास्तविक जरूरत होगी विकास नीति को नए सिरे से तैयार करना ताकि हम समतापूर्ण वृद्धि के करीब आ सकें। विकास से जुड़े हमारे प्रदर्शन में कुछ दीर्घकालिक खामियां हैं और हालिया आंकड़े बताते हैं कि कुछ कमियां भी हैं जिन्हें हल करना होगा:

1. निजी खपत और कारोबारी निवेश बढ़ाने के प्रयास।

2. उत्पादक रोजगार में वृद्धि को बढ़ावा देना और छोटे और मझोले उपक्रमों के लिए ऐसी नीतियां बनाना जो उन्हें बढ़ने को प्रोत्साहित करें।

3. शिक्षा, कौशल विकास और स्वास्थ्य सेवा में अहम सुधार ताकि श्रम शक्ति को नए पेशों के लिए उपयुक्त बनाया जा सके।

4. इन सबके साथ प्रभावी संघवाद के लिए लाभ और जरूरत को लेकर अधिक सम्मान की भावना।

पहले निजी खपत बढ़ाने की बात करते हैं। नैशनल अकाउंट्स स्टैटिसटिक्स (NAS) के ताजा आंकड़े बताते हैं कि खपत में वृद्धि की सालाना दर 2011-12 से 2018-19 तक सात फीसदी रहने के बाद गत पांच वर्षों से चार फीसदी से थोड़ी अधिक रह गई है।

2023-24 के दूसरे अग्रिम अनुमान बताते हैं कि निजी खपत में केवल तीन फीसदी वृद्धि हुई है। भारत जैसे बड़े देश में निजी खपत वृद्धि में मंदी कॉर्पोरेट निवेश को प्रभावित करेगी। यही वजह है कि ताजा एनएएस दिखाता है कि निजी कारोबारी निवेश की सालाना दर 2011-12 और 2015-16 के बीच 10 फीसदी से अधिक रहने के बाद अब घटकर पांच फीसदी से कम रह गई है।

ऐसा आंशिक रूप से वस्तु एवं सेवा निर्यात में कमी की वजह से हो सकता है। कुछ क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए तो कारोबारी निवेश घरेलू मांग वृद्धि से संचालित है जिसे निजी खपत आकार देती है। निजी खपत वृद्धि में कमी की वजह क्या हो सकती है? यह घरेलू बचत में इजाफा तो नहीं है क्योंकि एनएएस के मुताबिक पारिवारिक आय में घरेलू बचत का प्रतिशत 2011-12 के 29 फीसदी से कम होकर 2022-23 में 23 फीसदी रह गया है।

मेरी नजर में ऐसा इसलिए हुआ कि उच्च आय वाले समूहों की आय बढ़ी। यह महंगी टिकाऊ वस्तुओं और उपभोक्ता उत्पादों की बढ़ती मांग में भी नजर आता है। कम आय वाले समूहों में धीमी आय वृद्धि शायद धीमी खपत वृद्धि की मुख्य वजह है।

देश में आय की असमानता का आकलन बहुत विभाजित है। खासतौर पर हाल के वर्षों में ऐसा राजनीतिक वजहों तथा डेटा की कमी की वजह से हुआ। सावधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण 2022-23 के मुताबिक करीब 46 फीसदी श्रमिक कृषि क्षेत्र में हैं जबकि राष्ट्रीय स्तर पर सकल मूल्यवर्द्धन में कृषि की हिस्सेदारी 18 फीसदी है। इसका बड़ा हिस्सा भू-स्वामित्व के प्रतिफल के रूप में है।

इसके अलावा श्रमिकों का ऐसा समूह भी है जो बहुत अधिक शोषण का शिकार है। उदाहरण के लिए विनिर्माण क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक जो मार्च 2020 में लगे कोविड लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित हुए थे। श्रम शक्ति में इनकी हिस्सेदारी 13 फीसदी है।

उपरोक्त सर्वे का एक तथ्य यह भी है कि केवल 21 फीसदी रोजगार शुदा श्रमिकों के पास नियमित वेतन आय है और 18 फीसदी केवल घरेलू उपक्रमों में सहायक का काम करते हैं।

यह भी ध्यान देने वाली बात है कि गैर कृषि क्षेत्र में 74 फीसदी श्रमिक प्रोपराइटर और पार्टनरशिप उपक्रमों में काम करते हैं। इनमें से अनेक ऐसे हैं जो श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हैं।

श्रमिकों के अधिकारों के कानून लागू करना मायने रखता है और ऐसा किया जाना चाहिए। परंतु अहम जवाब एक ऐसी विकास नीति है जो करीब एक दशक तक श्रम आयु वाली आबादी की वृद्धि दर की तुलना में तेजी से उत्पादक रोजगार बढ़ाए।

इससे श्रमिक कृषि क्षेत्र से बाहर आएंगे और बड़ी तादाद में उनके मेहनताने में सुधार होगा। उन क्षेत्रों के कामगारों के मेहनताने में ऐसा सुधार देखा जा सकता है जहां उत्पादक रोजगार वहां की स्थानीय कामगार आबादी में वृद्धि से अधिक हैं या जहां सामाजिक कारक श्रम की सौदेबाजी की ताकत बढ़ाते हैं।

इसका एक उदाहरण है तमिलनाडु के गैर कृषि कामगारों की दैनिक मजदूरी और राष्ट्रीय औसत में अंतर। उन्हें रोज 482 रुपये मेहनताना मिलता है जबकि राष्ट्रीय औसत 348 रुपये का है। दक्षिण और पश्चिमोत्तर के अन्य प्रवासी निर्भर प्रांतों में भी यह अंतर काफी अधिक है।

प्रवास से मदद मिलती है और जनगणना के मुताबिक 2001 के 3.3 करोड़ कामगारों की तुलना में 2011 में 5.1 करोड़ प्रवासी कामगार थे। परंतु प्रवास कामगार आबादी की आयु में अनुमानित वृद्धि का समुचित जवाब नहीं है। खासकर उत्तर भारत में। इसका जवाब उत्तर भारत में उत्पादक रोजगार बढ़ाने में निहित है।मेरा मानना है कि छोटे उपक्रमों की गतिशीलता एक प्रमुख कारक है।

बहरहाल, इन्हें दिया जाने वाला नीतिगत प्रोत्साहन, खासतौर पर नियंत्रित नियमन से राहत के रूप में किया जाने वाला नीतिगत हस्तक्षेप उन पर यह दबाव बनाता है कि वे अपना स्तर छोटा बनाएं रखें। इससे बचने की जरूरत है। उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे छोटे से मध्यम आकार में अपना विस्तार करें और मझोले आकार से बड़े आकार की ओर बढ़ें।

उत्पादक रोजगार निर्माण का एक और पहलू है राष्ट्रीय मूल्य श्रृंखला पर नियमित ध्यान देना। यह भौतिक और डिजिटल अधोसंरचना में व्यवस्थित सुधार के साथ उत्तरी राज्यों को उच्च वृद्धि वाले दक्षिण और पश्चिम के राज्यों से जोड़ सकता है।

गौरतलब है कि उत्तर के राज्यों में रोजगार तैयार करने की सख्त आवश्यकता है। ई-कॉमर्स और डिजिटल भुगतान व्यवस्था का तेज उभार भी इसमें मदद कर सकता है।

प्रभावी रोजगार तैयार करने के लिए पर्याप्त कुशल कर्मियों की आवश्यकता है। इसके लिए कौशल विकास पर काम करना होगा। इससे भी एक कदम आगे बढ़कर शिक्षा और स्वास्थ्य की गुणवत्ता बढ़ाने पर भी काम किया जा सकता है। इससे न केवल समता बढ़ाने में मदद मिलेगी बल्कि प्रभावी श्रम शक्ति के लिए बेहतर आधार भी तैयार होगा।

इन उपायों से उत्पादक रोजगार तैयार करने की दर के कारण आय में इजाफा हो सकता है। खासकर उन इलाकों में जहां कृषि से विनिर्माण और सेवा क्षेत्र की ओर बदलाव की अधिक आवश्यकता है। इससे खपत की मांग बढ़ेगी और इस प्रकार निवेश तथा वृद्धि हासिल होगी जो सभी राज्यों के लिए मददगार साबित होगी।

परंतु इसके लिए एक योग्यता जरूरी है। अधिकांश उपाय अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होंगे। ऐसे में राष्ट्रीय नीतियां इस प्रकार बनानी होंगी ताकि राज्यों के पास पर्याप्त वित्तीय और निर्णय लेने की क्षमता हो और वे चुनिंदा उपायों को लागू कर सकें।

ऐसे में केंद्र में बनने वाली नई सरकार से मेरा अनुरोध है कि वह अपने वादे पूरे करे लेकिन साथ ही ऐसे उपाय भी अपनाए जो समतापूर्ण वृद्धि को गति देने वाले हों। ऐसा करते समय देश की भौगोलिक विविधता तथा जरूरतों और संभावनाओं का ध्यान रखा जाए।

First Published - May 16, 2024 | 10:22 PM IST

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