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मीडिया मंत्र: रिलायंस-डिज़्नी के महत्वपूर्ण करार पर रहे नजर

विलय हो गया तो भारत में केवल 3 बड़ी मीडिया कंपनियां रह जाएंगी। करीब 10,000 करोड़ रुपये राजस्व वाली गूगल इंडिया, 18,000 करोड़ रुपये राजस्व वाली मेटा इंडिया और रिलायंस-डिज़्नी।

Last Updated- October 14, 2024 | 9:30 PM IST
Reliance-Disney Merger: Merger completed, Nita Ambani will be the chairperson of the country's largest media company मर्जर हुआ पूरा, देश की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी की चेयरपर्सन होगी नीता अंबानी

Reliance-Disney deal: भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) ने 28 अगस्त को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जिसमें मनोरंजन उद्योग के लिए बड़ी खबर थी। उसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) और बोधि ट्री सिस्टम्स के स्वामित्व वाली वायकॉम 18 मीडिया और द वॉल्ट डिज़्नी कंपनी की स्टार इंडिया के प्रस्तावित विलय को मंजूरी देने की घोषणा थी। अगले ही दिन आरआईएल की सालाना आम बैठक में इसके चेयरमैन और प्रबंध निदेशक मुकेश अंबानी ने रिलायंस परिवार में डिज़्नी का स्वागत किया।

इस मौके पर जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, ‘आयोग ने प्रस्तावित विलय को मंजूरी दी है, लेकिन इसमें कुछ संशोधन मानने होंगे। आयोग का विस्तृत आदेश इसके बाद आएगा।’

जब तक यह लेख लिखा गया, सीसीआई से कोई विस्तृत आदेश नहीं आया था। सीसीआई के चेयरमैन और दो अन्य वरिष्ठ सदस्यों को सितंबर के मध्य में भेजे गए ईमेल का भी कोई जवाब नहीं मिला और न ही एक्स के जरिये उसने संपर्क साधने की कोशिश सफल हो सकी। विस्तृत आदेश के बिना विलय की शर्तों का अंदाजा लगाना मुश्किल है।

क्या वाकई यह बात मायने रखती है? सीसीआई ने पहले जिन चार मीडिया सौदों को मंजूरी दी थी, उनमें से तीन सफलतापूर्वक अमल में लाए गए। इनमें 2016 का पीवीआर सिनेमाज-डीटी सौदा, 2019 का जियो-डेन विलय और 2017 का डिश टीवी-वीडियोकॉन विलय शामिल हैं। मगर ये सभी वितरण क्षेत्र से जुड़े हैं। प्रसारण/ओटीटी क्षेत्र का 2022 का सोनी-ज़ी सौदा करार के विवादों की भेंट चढ़ गया।

इसलिए सवाल यह है कि इस विलय के परवान चढ़ने की कितनी संभावना है? काफी संभावना है क्योंकि 120 अरब डॉलर की आरआईएल अपना मीडिया कारोबार बढ़ाना चाहती है और 89 अरब डॉलर की कंपनी वॉल्ट डिज़्नी अपनी भारतीय इकाई को छोड़ना चाहती है। सोनी-ज़ी के उलट इन दोनों कंपनियों की ख्वाहिश एक दूसरे की जरूरतों के अनुरूप हैं।

इस विलय का जो असर होगा, उसकी वजह से सीसीआई के विस्तृत आदेश में दिलचस्पी बनी हुई है। इस वर्ष फरवरी में घोषित इस विलय के बाद भारत की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी अस्तित्व में आएगी, जिसका वित्त वर्ष 2024 में कुल 23,000 करोड़ रुपये का राजस्व होगा। इसमें स्टार प्लस और कलर्स सहित 110 टीवी चैनल होंगे और बिगबॉस तथा अनुपमा जैसे शो के दम पर 32 फीसदी टीवी दर्शक भी इसी के पास होंगे।

इसका मतलब है कि भारत के 89 करोड़ में से 28.5 करोड़ टीवी दर्शक नई कंपनी के पास ही होंगे और हिंदी, मराठी, तेलुगू और बांग्लाभाषी बाजारों की बड़ी हिस्सेदारी भी इसके पास होगी।

अगर आप इनके ओटीटी ब्रांड – वूट/जियो सिनेमा/हॉटस्टार/जियो टीवी – को जोड़ लें तो कॉमस्कोर के आंकड़ों के मुताबिक जून 2024 में इन्हें 18.4 करोड़ यूनीक दर्शक मिले। यह आंकड़ा भारत के सबसे बड़े ओटीटी यूट्यूब के कुल दर्शकों के आधे से कुछ ही कम है। कोई दर्शक यदि किसी खास सामग्री को अलग-अलग डिवाइस पर कई बार देखता है तो भी उसे केवल एक ही बार गिना जाता है और वह एक यूनीक दर्शक कहलाता है।

मीडिया पार्टनर्स एशिया के मुताबिक विलय के बाद बनी कंपनी के पास प्रसारकों के कुल राजस्व बाजार की 40 फीसदी हिस्सेदारी और प्रीमियम स्ट्रीमिंग बाजार की 45 फीसदी हिस्सेदारी होगी।

डिज़्नी-स्टार ने 2024 से 2027 तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के बैनर तले खेले जाने वाली सभी पुरुष और महिला प्रतियोगिताओं के डिजिटल और टीवी अधिकार हासिल कर लिए हैं। वायकॉम 18 के पास इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के स्ट्रीमिंग अधिकार हैं। दोनों ने इनके लिए कुल 9 अरब डॉलर चुकाए हैं। सीसीआई ने इस साल की शुरुआत में इन कंपनियों को नोटिस जारी कर टीवी पर खेल (क्रिकेट) दर्शकों में उनकी 78 फीसदी हिस्सेदारी और बाजार पर उसके असर के बारे में सवाल उठाए थे।

विलय हो गया तो भारत में केवल तीन बड़ी मीडिया कंपनियां रह जाएंगी – करीब 10,000 करोड़ रुपये राजस्व वाली गूगल इंडिया, 18,000 करोड़ रुपये राजस्व वाली मेटा इंडिया और रिलायंस-डिज़्नी। इसके बाद 3,000 करोड़ रुपये से 8,000 करोड़ रुपये सालाना राजस्व वाली सोनी, ज़ी, सन टीवी, पीवीआर-आईनॉक्स जैसी मीडिया कंपनियां हैं। फिर 50 करोड़ रुपये से 3,000 करोड़ रुपये सालाना राजस्व वाली कई टीवी, प्रिंट, फिल्म और म्यूजिक कंपनियां हैं।
इस विलय से ऐसी कंपनी बनेगी, जैसी इस बाजार ने अभी तक नहीं देखी है। इससे फिक्र होना लाजिमी है। मगर विलय के पक्ष में तर्क भी इसी बात से उभरते हैं।

पिछले दशक में फिल्म, टेलीविजन, स्ट्रीमिंग, अखबार या म्यूजिक समेत मीडिया के सभी रूपों को गूगल, मेटा, नेटफ्लिक्स, एमेजॉन, स्पॉटिफाई और अन्य मीडिया कंपनियों ने दुनिया भर में नई परिभाषा दी है। वे विभिन्न श्रेणियों और देशों के दर्शकों को प्रसारण और प्रकाशन मीडिया से एक चौथाई कीमत पर सामग्री देते हैं और 70-80 फीसदी डिजिटल विज्ञापन बटोर लेते हैं। फिर इनकी सामग्री यूजर्स के द्वारा ही तैयार की गई क्यों न हो, जिसमें बिल्लियों और बच्चों से जुड़े शॉर्ट वीडियो से लेकर वित्तीय सलाह और न्यूरोसाइंस तक की बात होती है।

इनमें से कई प्लेटफॉर्म पर पेशेवरों या आम मीडिया फर्मों द्वारा तैयार किए शॉर्ट वीडियो और टेक्स्ट बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं। पहले सोनी पर आने वाले द कपिल शर्मा शो या बीबीसी के ग्राहम नॉर्टन शो या शाहरुख खान की जवान अथवा सीबीएस की द बिग बैंग थ्योरी से निकाले गए शॉर्ट्स को लाखों लोग देखते हैं।

हालांकि इसके नियम टेक-मीडिया प्लेटफॉर्म तैयार करते हैं, जिनके पास एडटेक मशीन होती हैं, कम कीमत होती है और दुनिया भर में पहुंच होती है। किसी भी देश में बाजार को नई परिभाषा देने और ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन बटोरने के लिए सभी मीडिया कंपनियां होड़ कर रही हैं। अभी तक कोई भी मीडिया कंपनी टीवी दर्शकों तक व्यापक पहुंच को ऑनलाइन वीडियो की बढ़ती ताकत के साथ मिलाकर विज्ञापनदाताओं के साथ भुनाने में कामयाब नहीं हो पाई है।

आरआईएल (RIL) के पास इस संयुक्त इकाई की बहुलांश हिस्सेदारी है। करीब 120 अरब डॉलर के राजस्व के साथ यह उन समूहों में है, जो 307 अरब डॉलर वाली अल्फाबेट (गूगल) या 134 अरब डॉलर वाली मेटा को चुनौती दे सकता है। इसके लिए दो बातें होनी चाहिए।

पहली, आरआईएल कीमत कम करने की ऐसी होड़ में नहीं होगी, जो सभी के लिए कारोबार बिगाड़ दे। दूसरी, उद्यम गैस, खुदरा या दूरसंचार में भारी-भरकम कारोबार वाले समूह में जाकर गुम न हो जाए। इस समय वायकॉम18 और स्टार के कारोबार का आरआईएल के राजस्व में महज 2 फीसदी योगदान है।

सैद्धांतिक रूप से इस विलय में मीडिया कारोबार को नई परिभाषा देने की क्षमता है और दुनिया भर के लोगों को अहम सबक देने की भी कुव्वत है। इसी वजह से सौदे की बारीकियां जरूरी हैं। इसके लिए सीसीआई का इंतजार रहेगा।

First Published - October 14, 2024 | 9:29 PM IST

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