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Opinion | विकसित भारत के लिए तय करें प्राथमिकताएं

वर्ष 2022 में $2,390 प्रति व्यक्ति आय के साथ हम निम्न आय वाले देशों की सूची में नीचे की ओर थे। इस सूची में शामिल देशों में प्रति व्यक्ति आय $1,136 से 13,846 तक थी।

Last Updated- October 17, 2024 | 10:48 PM IST
If the institutions are strong then the development will be better.

वर्ष 2047 तक देश को विकसित बनाने का लक्ष्य हासिल करना सरल नहीं है। किंतु ऐसे अनेक अवसर हैं जिनकी मदद से हम यह लक्ष्य हासिल करने की दिशा में बढ़ सकते हैं। बता रहे हैं लवीश भंडारी

क्या 2047 तक देश को विकसित बनाना संभव है? वर्ष 2022 में 2,390 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति आय के साथ हम निम्न आय वाले देशों की सूची में नीचे की ओर थे। इस सूची में शामिल देशों में प्रति व्यक्ति आय 1,136 से 13,846 डॉलर तक थी।

जाहिर है कि फासला काफी अधिक है और भारत को उच्च आय वाले देशों की सूची तक पहुंचने में समय लगेगा। हाल-फिलहाल ज्यादातर अनुमानों में भारत की दीर्घकालिक वृद्धि दर 6 से 7 फीसदी के बीच रहने की बात कही गई है, जो 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य पाने के लिए काफी नहीं है।

ध्यान रहे कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां इस मुश्किल लक्ष्य को हासिल करने में बाधा बनेंगी मगर तकनीकी परिवर्तन आदि के कारण ऐसी मौके भी मिलेंगे, जो ऊंची वृद्धि में मददगार बनेंगे।

ऐसे लक्ष्य का क्या फायदा, जो महत्त्वाकांक्षी न हो? और ऐसी महत्त्वाकांक्षा का क्या फायदा, जिसे हासिल न किया जा सके? इसलिए वृद्धि के वर्तमान स्तर के साथ तो 2047 तक विकसित भारत बनाने का लक्ष्य हासिल होता नहीं दिखता मगर ढाई दशक बहुत लंबा समय होता है।

समय के साथ हमारे पास बेहतर मानव संसाधन होगा, बेहतर तकनीक उपलब्ध होंगी, अधिक ज्ञान होगा। इसलिए लक्ष्य को कम करने के बजाय हमें भविष्य में उच्च वृद्धि के लिए तैयार होना चाहिए और उन बिंदुओं को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिनमें देर नहीं की जा सकती।

आदर्श तौर पर भारत को बहुत कुछ हासिल करना है और हम जितनी जल्दी शुरुआत करेंगे उतना ही अच्छा है। उनमें राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण, बेहतर मानू पूंजी, भूमि, श्रम एवं पूंजी बाजार से जुड़े सुधार शामिल हैं। ये सभी तथा कुछ अन्य पहलू अहम हैं मगर मेरा सवाल है कि अब सरकार को ऐसा क्या करना है, जिसमें एक साल भी देर नहीं की जा सकती? जाहिर है वे बदलाव, जिन्हें लागू करने में नक्त लगता है। सोच-विचारकर मुझे इस समय दो परिवर्तन सबसे जरूरी लगते हैं।

मेरी सूची में सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा है। 2047 में एक औसत श्रमिक की श्रम उत्पादकता आज की तुलना में बहुत अधिक होनी चाहिए। कुछ लोग मानते हैं कि प्राथमिक शिक्षा पर एक रुपया ज्यादा खर्च करने का ज्यादा फायदा नहीं होता क्योंकि राज्य और स्थानीय प्रशासन के स्तर पर कई कमियां हैं। यह मान्यता पूरी तरह गलत नहीं है लेकिन प्राथमिक शिक्षा पर निवेश रोक देना एकदम गलत है।

हमें सोचना है कि शिक्षा बेहतर ढंग से कैसे दी जाए मगर हमें शिक्षकों, कक्षाओं, सुविधाओं, शिक्षक प्रशिक्षण आदि पर तत्काल अधिक धन खर्च करने की भी जरूरत है। हमें प्राथमिक शिक्षा में कला, क्राफ्ट, संगीत और दूसरी पठनेतर गतिविधियों को भी बढ़ावा देना होगा। इसके लिए खेल-खेल में शिक्षा देने के तरीके अपनाने होंगे क्योंकि कल का उच्च उत्पादकता वाला कामगर रचनात्मक भी होना चाहिए।

डिजिटल तकनीक के बेहतर इस्तेमाल से शिक्षक और विद्यार्थियों की निगरानी, सतत प्रशिक्षण, सुधार, हर बच्चे की प्रगति पर नजर रखना संभव है। प्राथमिक शिक्षा के लिए मिशन की तरह काम करना होगा, जो संभव ही नहीं है, बहुत जरूरी भी है। आज प्राथमिक स्कूलों को सुधारना आईआईटी और विश्वविद्यालय बनाने से भी ज्यादा जरूरी है। अगर बच्चे को प्राथमिक स्कूल में अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा मिली है तो कौशल प्रदान करने जैसी वर्तमान प्राथमिकताएं भी बेहतर ढंग से अमल में लाई जा सकती हैं।

प्राइमरी स्कूल में शिक्षा अच्छी नहीं है तो कौशल प्रदान करने के लिए कितना भी धन खर्च कर लें, वांछित नतीजा नहीं मिलेगा। एक पल के लिए मान लेते हैं कि भारत विकसित देश बन जाता है मगर श्रम उत्पादकता में जरूरी सुधार नहीं होता है। तब कैसी अर्थव्यवस्था बनेगी? आज दुनिया में कई देश हैं, जहां असमानता बहुत अधिक है और जो प्रगति को व्यापक स्तर तक नहीं पहुंचा सके। खराब शिक्षा वाला भारत भी वैसा ही होगा। इसलिए भारत के पास प्राथमिक शिक्षा की चुनौतियां हल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और उसे यह अभी करना होगा।

दूसरी प्राथमिकता है कृषि भंडारण और ढुलाई यानी लॉजिस्टिक्स। पूरे दक्षिण एशिया में मौसम की अतिरंजना के कारण वृहद आर्थिक असंतुलन उत्पन्न हो गया है। आने वाले समय में इसमें इजाफा होगा। भारत में भी खाद्य मुद्रास्फीति को संभालना आसान नहीं है।

चीन ने भारत के मुकाबले बहुत तेज दर से वृद्धि की है मगर भारत में खाद्य मुद्रास्फीति वहां की तुलना में अधिक रही है। दोनों देशों में सरकारें कृषि में हस्तक्षेप करती है किंतु अन्य अंतरों के बीच बड़ा अंतर यह है कि चीन अपने यहां खाद्य का प्रबंधन करने में अधिक माहिर है। भारत भी अपनी कृषि उपज को अच्छे ढंग से संभाल सकता है मगर इसके लिए कृषि भंडारण के लिए वेयरहाउस का बड़ा नेटवर्क होना चाहिए, जिसमें शीत भंडारगृह यानी कोल्ड स्टोरेज भी शामिल हों। हम इसमें ढुलाई की बेहतर प्रणाली भी जोड़ सकते हैं मगर भंडारण की व्यापक सुविधा सबसे जरूरी है।

कृषि बाजारों को निजी क्षेत्र के लिए खोलने का विरोध दुर्भाग्य से सफल रहा मगर इसे कृषि में सभी तरह की प्रगति रोक देने वाली यथास्थिति नहीं मान लेना चाहिए। किसान आढ़तियों पर निर्भर हों या न हों, भंडारण सुविधाएं उपलब्ध होने से उन्हें लाभ जरूर होगा। इससे आढ़तियों पर निर्भरता कम होगी, किसान सशक्त होंगे और खाद्य कीमतों में उतार-चढ़ाव भी घटेगा।

किसान जितने अधिक प्रगतिशील होंगे, वे भंडारण का व्यापक नेटवर्क होने पर उच्च मूल्य वाले किंतु जल्दी खराब होने वाले खाद्य उत्पादों की ओर उतना ही अधिक बढ़ सकेंगे। इसलिए कोल्ड स्टोरेज की अहमियत बढ़ती जाएगी और उनकी मदद से किसान खाद्यान्न की खेती से दूर जा सकेंगे।

सवाल यह है कि वेयरहाउसिंग और कृषि लॉजिस्टिक्स में अभी निवेश क्यों? हम 10 साल और इंतजार क्यों नहीं कर सकते? पहली बात देश में जिस तरह की खेती हो रही है, उसमें नई तकनीक, उत्पादन और प्रक्रिया के प्रसार में बहुत समय लग जाता है। दूसरी बात जलवायु परिवर्तन का आसन्न संकट है, जिसके कारण हमें मौसम की अतिरंजना से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।

तीसरी बात, हम खेती की प्रगति में बाधा डाल रही यथास्थिति को खत्म करने के लिए कानून में बदलाव नहीं कर पाए, इसलिए उस काम के लिए तकनीक तथा बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल करने का समय आ गया है।

हमने पहले ही कहा है कि कई चुनौतियां आएंगी तो कई अवसर भी आएंगे। नवीकरणीय ऊर्जा तथा भंडारण तकनीक में सुधार के साथ ऊर्जा परिवर्तन सस्ता होता जाएगा और डिजिटल क्रांति कई क्षेत्रों में उत्पादकता और प्रभावशीलता बढ़ा देगी। भविष्य में आने वाले इन अवसरों की सूची बहुत लंबी है। जलवायु परिवर्तन से जुड़े बदलाव भी अपने साथ कई लाभ लाएंगे।

उदाहरण के लिए भारत अभी जीवाश्म ईंधन के शुद्ध आयात पर 100 से 150 अरब डॉलर (तेल की ऊपर-नीचे आती कीमतों के हिसाब से) खर्च करता है और यह खर्च निकट भविष्य में बढ़ता जाएगा। लेकिन अगले दशक के मध्य में इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ने के साथ ही इसमें कमी आने लगेगी। इससे होने वाले लाभ का हिसाब अभी नहीं लगाया गया है मगर वह बहुत अधिक हो सकता है।

कुल मिलाकर 2047 तक विकसित भारत बनाने का लक्ष्य भले ही अभी पहुंच से बाहर लग रहा है किंतु भविष्य में अनेक अवसर हैं, जिनके लिए हमें तैयार रहना चाहिए। ऐसा करने के साथ ही हमें सुनिश्चित करना होगा कि प्राथमिक शिक्षा और कृषि भंडारण तथा लॉजिस्टिक्स को तत्काल प्राथमिकता मानकर काम किया जाए। इससे अधिक प्रयास किए गए तो और भी अच्छा होगा।

(लेखक सीएसईपी रिसर्च फाउंडेशन के प्रमुख हैं। लेख में निजी विचार हैं)

First Published - October 17, 2024 | 10:36 PM IST

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