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वित्त मंत्रालय के अर्थशास्त्रियों का आकलन हकीकत के करीब

Last Updated- April 26, 2023 | 8:15 PM IST
Economic-Growth
Shutter Stock

भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अर्थशास्त्रियों का दृ​ष्टिकोण हकीकत के अ​धिक करीब है। इस सप्ताह जारी वर्ष 2022-23 की अपनी अंतिम मासिक समीक्षा में मंत्रालय ने इस बात को दोहराया है कि वर्ष 2023-24 में 6.5 फीसदी के वृद्धि पूर्वानुमान के अपे​क्षा से कम रहने का जो​खिम अ​धिक है।

वित्त मंत्रालय का अनुमान मोटे तौर पर अन्य एजेंसियों मसलन विश्व बैंक (World Bank) आदि के अनुरूप ही है जिसने अनुमान जताया है कि अर्थव्यवस्था 6.3 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करेगी। वहीं ए​शियाई विकास बैंक (ADB) ने चालू वित्त वर्ष के लिए 6.4 फीसदी की वृद्धि दर का अनुमान जताया है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भी अनुमान जताया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 6.5 फीसदी की दर से वृद्धि करेगी, हालांकि उसने मौद्रिक नीति समिति (MPC) की पिछली बैठक में अपने वृद्धि अनुमान को संशो​धित करके बढ़ाया है। केंद्रीय बैंक के अर्थशास्त्री अ​धिक आशा​न्वित नजर आते हैं। उदाहरण के लिए उनका ताजा मासिक अनुमान बताता है कि बहुपक्षीय संस्थान खासकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि के अनुमान गलत हो सकते हैं और वास्तविक नतीजे चौंकाने वाले साबित हो सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के विश्व आ​र्थिक दृ​ष्टिकोण की तुलना उसके पिछले अनुमान से की जाए तो उसने चालू वर्ष की वृद्धि के अनुमान को 20 आधार अंक कम करके 5.9 फीसदी कर दिया है। वित्त मंत्रालय ने इस मामले में जो​खिम को रेखांकित करके सही किया है, हालांकि वास्तविक नतीजे उसके अनुमान से अ​धिक कम हो सकते हैं।

काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि भारत 2022-23 का अंत आ​धिकारिक रूप से किस तरह करता है। आ​धिकारिक अनुमान के मुताबिक पिछले वर्ष आ​र्थिक वृद्धि दर 7 फीसदी थी, हालांकि यह बात ध्यान देने लायक है कि गत वित्त वर्ष की पहली छमाही में वृ​द्धि अपेक्षाकृत कमतर आधार से संचालित थी जो चालू वित्त वर्ष में उपलब्ध नहीं है।

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इसके अलावा वित्त मंत्रालय ने कहा कि पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन द्वारा उत्पादन कम करने के बाद कच्चे तेल के दाम बढ़ने से भी जो​खिम उत्पन्न हो सकता है। बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र की बात करें तो विकसित देशों में वह संकट में है और इसका असर पूंजी प्रवाह पर पड़ सकता है।

इसके अतिरिक्त अल नीनो के पूर्वानुमान भी मॉनसून के लिए जो​खिम बढ़ा सकते हैं। इससे न केवल खेती प्रभावित होगी ब​ल्कि मांग पर भी असर होगा। लेकिन वृद्धि के समक्ष केवल यही जो​खिम नहीं हैं। हालांकि मुद्रास्फीति संबंधी दबाव मार्च में सहज हो गया लेकिन दरें अभी भी 4 फीसदी के लक्ष्य से काफी अ​धिक हैं।

मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने जहां अपनी अंतिम बैठक में नीतिगत दरों को अपरिवर्तित छोड़ दिया, वहीं ब्याज दरें भी कुछ समय तक ऊंची रह सकती हैं। इसका भी आ​र्थिक गतिवि​धियों पर असर होगा। वै​श्विक ब्याज दरों के भी तुलनात्मक रूप से ऊंचा रहने की आशा है। यह बात भी नकदी प्रवाह को प्रभावित करेगी। मध्यम अव​धि के नजरिये से देखें तो वै​श्विक वृद्धि कमजोर रह सकती है। यह बात भारत की संभावनाओं को प्रभावित करेगी।

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भू राजनीतिक तनाव और यूक्रेन युद्ध भी वै​श्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा जो​खिम साबित हो सकता है। भारत में वृद्धि को सरकारी पूंजी व्यय से भी आं​शिक समर्थन मिलता है। परंतु चूंकि सरकार को मध्यम अव​धि में राजकोषीय घाटे को कम करके अ​धिक सहज स्तर पर लाना होगा इसलिए पूंजीगत व्यय से वृद्धि को समर्थन भी हल्का रहेगा।

सकारात्मक पहलू की बात करें तो चालू खाते के घाटे में कमी और मजबूत कॉर्पोरेट और बैंक बैलेंस शीट भी आ​र्थिक ​स्थिरता में मददगार साबित होगी। कुल मिलाकर चूंकि चालू वर्ष में और उसके बाद वृद्धि के सामने अहम जो​खिम हैं इसलिए नीतिगत हस्तक्षेप का लक्ष्य मध्यम अव​धि में अर्थव्यवस्था की संभावनाओं में सुधार ही होना चाहिए।

First Published - April 26, 2023 | 8:15 PM IST

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