facebookmetapixel
Test Post कैश हुआ आउट ऑफ फैशन! अक्टूबर में UPI से हुआ अब तक का सबसे बड़ा लेनदेनChhattisgarh Liquor Scam: पूर्व CM भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य को ED ने किया गिरफ्तारFD में निवेश का प्लान? इन 12 बैंकों में मिल रहा 8.5% तक ब्याज; जानिए जुलाई 2025 के नए TDS नियमबाबा रामदेव की कंपनी ने बाजार में मचाई हलचल, 7 दिन में 17% चढ़ा शेयर; मिल रहे हैं 2 फ्री शेयरIndian Hotels share: Q1 में 19% बढ़ा मुनाफा, शेयर 2% चढ़ा; निवेश को लेकर ब्रोकरेज की क्या है राय?Reliance ने होम अप्लायंसेस कंपनी Kelvinator को खरीदा, सौदे की रकम का खुलासा नहींITR Filing 2025: ऑनलाइन ITR-2 फॉर्म जारी, प्री-फिल्ड डेटा के साथ उपलब्ध; जानें कौन कर सकता है फाइलWipro Share Price: Q1 रिजल्ट से बाजार खुश, लेकिन ब्रोकरेज सतर्क; क्या Wipro में निवेश सही रहेगा?Air India Plane Crash: कैप्टन ने ही बंद की फ्यूल सप्लाई? वॉयस रिकॉर्डिंग से हुआ खुलासाPharma Stock एक महीने में 34% चढ़ा, ब्रोकरेज बोले- बेचकर निकल जाएं, आ सकती है बड़ी गिरावट

दूरसंचार आयोग: भंग करने का कारण नहीं स्पष्ट

Last Updated- January 23, 2023 | 10:32 PM IST
Telecom

जब सैम पित्रोदा ने दूरसंचार आयोग की स्थापना की थी तो उस समय देश में शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारियों के बीच काफी हाय-तौबा मच गई। पित्रोदा प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान देश में तकनीक के क्षेत्र में नई पहल का नेतृत्व कर रहे थे। दूरसंचार आयोग की स्थापना हुई तो अधिकारियों की मर्जी के खिलाफ कुछ नए पद सृजित किए गए।

दरअसल इन अधिकारियों को लगा कि दूरसंचार जैसे नए क्षेत्र में उनकी अहमियत कम हो जाएगी और उनके अधिकारों पर भी कैंची चल जाएगी। वह वक्त 1989 था। उस समय भारत में मोबाइल फोन की शुरुआत तक नहीं हुई थी और फिक्स्ड टेलीफोन केवल कुछ गिने चुने एवं प्रभावी लोगों के पास थे। इंटरनेट तक लोगों की पहुंच तो किसी स्वप्न जैसा था। उस परिप्रेक्ष्य में दूरसंचार आयोग की स्थापना हुई थी। इसका मकसद तेजी से बदल रहे दूरसंचार क्षेत्र में उभरती परिस्थितियों के अनुरूप त्वरित गति से निर्णय लेना था।

पित्रोदा ने उस समय मीडिया से कहा था कि दूरसंचार क्षेत्र में बदलावों के अनुसार कदम उठाने के लिए एक लचीला संगठन होना चाहिए। दूरसंचार आयोग पर पित्रोदा का समर्थन करने वाले लोगों ने स्वीकार किया कि सरकार में अधिकारियों की मनमानी और उनके लचर रवैये से निर्णय लेने में देरी हो रही है। इस तरह परमाणु ऊर्जा आयोग की तर्ज पर ही एक शक्तिशाली संगठन अस्तित्व में आया था। दूरसंचार आयोग में एक अध्यक्ष का पद था।

इसके अतिरिक्त चार पूर्णकालिक एवं चार अंशकालिक सदस्य नियुक्त किए गए थे, जो प्रमुख मंत्रालयों और योजना आयोग का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। दूरसंचार से जुड़े विभिन्न पहलुओं से निपटने के लिए आयोग के पास प्रशासनिक एवं वित्तीय अधिकार थे। इस पूरी पहल का उद्देश्य लालफीताशाही कम कर त्वरित गति से निर्णय लेना था। 2023 आते-आते काफी कुछ बदल गया है। चार वर्ष पहले दूरसंचार आयोग का नाम बदलकर डिजिटल कम्युनिकेशंस कमीशन (डीसीसी) रख दिया गया था। अब इस संस्था का अस्तित्व समाप्त कर दिया जाएगा। ऐसा करने के पीछे अधिकारियों का तर्क है कि दोहराव से बचने और देरी खत्म कर निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए यह कदम उठाया जाएगा।

दूसरे शब्दों में कहें तो करीब 34 वर्ष पहले जिन कारणों का हवाला देते हुए दूरसंचार आयोग की स्थापना की गई थी उन्हीं कारणों को आधार बनाकर इसे समाप्त करने का निर्णय लिया गया है। इससे हमारे लिए एक पेचीदा स्थिति उत्पन्न हो गई है। तो क्या दूरसंचार आयोग की स्थापना के पीछे दिए गए कारण बढ़ा-चढ़ा कर दिए गए थे या वे भ्रामक थे? क्या दूरसंचार आयोग और बाद में डीसीसी के रूप में सामने आए इस संगठन की स्थापना के उद्देश्य प्राप्त हो गए हैं और अब इस संस्था का कोई मतलब नहीं रह गया है? क्या इस संस्था की प्रकृति एवं इसमें संलग्न प्रक्रिया बीच में ही बदल गई हैं? या फिर ऐसी कोई बात है जो हम पूरी तरह नहीं जानते हैं कि यह संस्था क्यों समाप्त की जा रही है? क्या डीसीसी को समाप्त करने का कोई बड़ा कारण है?

जहां तक प्रक्रिया की बात है, ऐसा प्रतीत नहीं होता कि इस संगठन की संरचना में कुछ मामूली बदलाव के अलावा कुछ खास फेरबदल किए गए हैं। दूरसंचार आयोग और बाद में डीडीसी में प्रमुख मंत्रालयों के प्रतिनिधि दूरसंचार क्षेत्र से जुड़े मसलों पर विचार करते आए हैं मगर बड़े निर्णय अंततः केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिए जाते रहे हैं। क्या इसे कार्य को ‘दोहराव’ का नाम दिया जा सकता है? वास्तव में केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष आने वाले किसी भी विषय पर विभिन्न मंत्रालयों के बीच चर्चा पूरी प्रक्रिया का हिस्सा है।

आइए, दूरसंचार आयोग की स्थापना के उद्देश्यों पर विचार करते हैं। जब इसकी स्थापना हो रही थी तो देश में दूरसंचार उपभोक्ताओं की संख्या 1989 के 40 लाख से बढ़ाकर शताब्दी के अंत तक 3 करोड़ करनी थी। इसके अलावा एक सक्षम निर्णय लेने वाली संस्था का गठन करना भी एक लक्ष्य था। भारत में मोबाइल टेलीफोन के आगमन के बाद भारत में दूरसंचार उपभोक्ताओं की संख्या तेजी से बढ़ गई।

दूरसंचार क्षेत्र के आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2001-02 की पहली तिमाही में नए मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या (5,01,000) लैंडलाइन कनेक्शन की संख्या (4,89,000) को पार कर गई। खबरों के अनुसार यद्यपि 2000 में मंदी थी मगर शुल्क दरों में कटौती के दम पर अगले कैलेंडर वर्ष में दूरसंचार उपभोक्ताओं की संख्या में 85 प्रतिशत से अधिक तेजी देखी गई।

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के आंकड़े भारत में दूरसंचार सेवाओं के विस्तार का कहानी बयां करते हैं। दिसंबर 2002 में समाप्त तिमाही में कुल उपभोक्ताओं की संख्या 5.06 करोड़ थी जो दिसंबर 2003 में समाप्त हुई तिमाही में बढ़कर 7.05 करोड़ हो गई। उस समय दूरसंचार घनत्व तब भी एक अंक में था। दो दशक बाद ट्राई के आंकड़े एक अलग भारत की तस्वीर पेश करते हैं। जून 2022 कि तिमाही के विश्लेषण से पता चलता है कि शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोक्ताओं की संख्या क्रमशः 64.9 करोड़ और 52.3 करोड़ के साथ लगभग बराबर है। शहरी क्षेत्रों में दूरसंचार घनत्व 134.72 प्रतिशत के साथ कहीं ज्यादा है। ग्रामीण क्षेत्र में यह घनत्व 58.56 प्रतिशत है।

इस तरह, देश में दूरसंचार सेवाओं के विस्तार का लक्ष्य लगभग हासिल कर लिया गया है, वहीं डीसीसी डिजिटल कम्युनिकेशन पॉलिसी, 2018 से जोड़ दिया गया। इस नीति में नागरिकों और उद्यमों की दूरसंचार से जुड़ीं जरूरतें पूरी कर भारत को डिजिटल रूप से सक्षम एक अर्थव्यवस्था के मार्ग पर ले जाना था। इसके अलावा इस नीति के तहत 2022 तक सभी को ब्रॉडबैंड सेवाओं से जोड़ना था। हाल के महीनों में इंटरनेट के विस्तार की प्रगति सुस्त रही है और वायर ब्रॉडबैंड का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या मात्र 3 करोड़ है। हालांकि वायरलेस ब्रॉडबैंड उपभोक्ताओं की संख्या 82 करोड़ हो गई है। देश के सभी लोगों को ब्रॉडबैंड सेवाएं मुहैया कराने में थोड़ा समय लगेगा इसलिए डीसीसी का काम अभी पूरा नहीं हुआ है।

अधिकारियों ने सुझाव दिया है कि डीसीसी की जरूरत नहीं है क्योंकि 100 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजना प्रस्ताव को मंजूरी देना व्यय विभाग का काम है। मगर नीतियां बनाने वाली संस्था को खत्म करने की यह पर्याप्त वजह नहीं लग रही है। अगर डीसीसी समाप्त किया जाता है तो 5जी स्पेक्ट्रम नीति इसका आखिरी बड़ी निर्णय होगा। मगर यह बात गले नहीं उतर रही है कि जिस संस्था का गठन अधिकारियों की ढिलाई दूर करने के लिए किया गया था उसे क्यों समाप्त किया जा रहा है।

First Published - January 23, 2023 | 10:32 PM IST

संबंधित पोस्ट