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स्पेक्ट्रम मिलने में लगेगा वक्त, TRAI को अभी करना है ये काम

सभी तरह की मंजूरियां मिलने के बाद रिलायंस जियो और एयरटेल समर्थित वनवेब को अब सिर्फ जरूरी स्पेक्ट्रम की आवश्यकता है, जिससे सैटेलाइट संचार सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकें।

Last Updated- December 19, 2023 | 10:53 PM IST
Musk, TATA, Mittal and Amazon on one side, Ambani on the other for satellite spectrum

संचार विधेयक में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के प्रशासकीय आवंटन को मंजूरी दे दी गई है, लेकिन सैटेलाइट संचार सेवा प्रदाताओं को अभी कम से कम 4 से 5 महीने या इससे अधिक इंतजार करना पड़ सकता है।

सभी तरह की मंजूरियां मिलने के बाद रिलायंस जियो और एयरटेल समर्थित वनवेब को अब सिर्फ जरूरी स्पेक्ट्रम की आवश्यकता है, जिससे सैटेलाइट संचार सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकें।

इस मामले से जुड़े सूत्रों ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि विधेयक पर पूरी चर्चा होगी और फरवरी में बजट सत्र में ही संसद में इसे पारित कराया जा सकेगा। सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए विभागीय नियम बनाने का काम उसके बाद ही शुरू होगा और उसमें कुछ महीने लगेंगे।

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) में 3 महीने से कोई प्रमुख नहीं है। ट्राई को मूल्य व्यवस्था की सिफारिश करनी है और एयरवेव्स के लिए आरक्षित मूल्य तय करना है। संचार नियामक से जुड़े अधिकारियों ने कहा कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम पर काम तभी शुरू हो पाएगा, जब नए चेयरमैन कार्यभार संभाल लेंगे। दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने पिछले 6 महीने में इस पद के लिए दो बार आवेदन मांगे हैं।

सैटेलाइट या ऑर्बिट, रेडियो स्पेक्ट्रम का एक सेग्मेंट होता है। यह ऑर्बिट में सैटेलाइट भेजे जाने के बाद उपलब्ध होता है। पिछले कुछ वर्षों से बहस चल रही थी कि इस दुर्लभ संसाधन की नीलामी की जाए या सरकार द्वारा आवंटित किया जाए। अब संचार विधेयक में सैटेलाइट आधारित सेवाओं को उस सूची में डाला गया है, जहां सरकार को प्रशासनिक रूप से स्पेक्ट्रम आवंटन का अधिकार होगा। इसके साथ ही दूरसंचार उद्योग में स्पेक्ट्रम को लेकर यह बहस खत्म हो गई है।

इसमें टेलीपोर्ट, टेलीविजन चैनलों, डी2एच, डिजिटल सैटेलाइट न्यूज गैदरिंग, वेरी स्मॉल अपर्चर टर्मिनल (वीसैट) और एल व एस बैंड में मोबाइल सैटेलाइट सर्विस के अलावा अन्य शामिल हैं, जिन्हें स्पेक्ट्रम आवंटन की नीलामी से दूर रखा गया है।

नीलामी के विपरीत स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन में स्पेक्ट्रम के किसी खास बैंड का इस्तेमाल कई ऑपरेटरों को करने की अनुमति होगी। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पृथ्वी पर विशेष स्थानों पर सैटेलाइट बैंड की रैखिक प्रकृति में किसी सैटेलाइट द्वारा कक्षा में तभी सेवा दी जा सकती है जब वह सीधे इसके ऊपर स्थित हो। यह प्वाइंट से आगे बढ़ जाता है, ऐसे में अलग ऑपरेटर से जुड़ा सैटेलाइट वह बैंड ले सकता है।

अधिकारियों ने कहा कि इन तकनीकी चुनौतियों के कारण सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की वैश्विक रूप से कहीं भी नीलामी नहीं होती है।

सूत्रों ने कहा कि सैटेलाइट अर्थव्यवस्था इस समय कुल मिलाकर दूरसंचार क्षेत्र में अहम बनी हुई है। उम्मीद की जा रही है कि अगले 5 साल तक ऐसी स्थिति बनी रहेगी, भले ही तकनीक और इसके इस्तेमाल में बहुत तेजी से बदलाव हो रहा है। लेकिन इस क्षेत्र में स्टार्टअप की लंबी सूची है और सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल बढ़ रहा है। इसके कारण सैटेलाइट उद्योग का मूल्य आसमान छू सकता है।

सूत्रों ने कहा कि इस क्षेत्र में ज्यादा प्रतिस्पर्धा उभर रही है, ऐसे में सरकार एक बार फिर समीक्षा करेगी कि क्या नीलामी का तरीका उचित होगा और उसके मुताबिक विधेयक में प्रावधान किए जाएंगे।

इकोनॉमिक लॉ प्रैक्टिस में पार्टनर अभय चटोपाध्याय ने कहा कि प्रशासनिक मूल्य से कारोबारियों के लिए लागत में कमी आएगी क्योंकि उन्हें बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धी और खर्चीली नीलामी प्रक्रिया में शामिल नहीं होना पड़ेगा।

बढ़ रही है दौड़

दूरसंचार विभाग ने पहले ही यूटेलसैट वनवेब और रिलायंस जियो की सैटेलाइट शाखा जियो स्पेस लिमिटेड को भारत में सैटेलाइट-आधारित ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक लाइसेंस दे दिया है।

जियो लग्जमबर्ग की सैटेलाइट टेलीकम्युनिकेशंस नेटवर्क प्रोवाइडर एसईएस से मीडियम अर्थ ऑर्बिट (एमईओ) सैटेलाइट जुटा रही है।

यूटेलसैट वन वेब का गठन सितंबर में किया गया था। इसका गठन वनवेब और फ्रांस के सैटेलाइट ऑपरेटर यूटेलसैट कम्युनिकेशन के विलय के बाद हुआ। यह सैटेलाइट के जियोसिंग्रोनस इक्वाटोरियल ऑर्बिट (जीईओ)- लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) का दस्ता तैयार कर रही है।

First Published - December 19, 2023 | 10:53 PM IST

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