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Opinion: भारत का दशक और बाजारों का दमखम

अधिकांश निवेशक स्वत: यह मानते नजर आ रहे हैं कि भारत के मजबूत जीडीपी और शेयर बाजारों के बीच आने वाले दशक में आपसी रिश्ता रहेगा।

Last Updated- January 10, 2024 | 10:35 PM IST
India GDP growth rate

क्या अर्थव्यवस्था के सही ढंग से गति पकड़ने के पहले ही बाजार अपनी पूरी गतिशीलता दिखा चुके हैं? इस विषय में विस्तार से अपनी राय रख रहे हैं आकाश प्रकाश

अधिकांश विश्लेषकों में यह स्पष्ट समझ है कि भारत का वक्त आ चुका है। अतीत के सुधारों, भू-राजनीति, बदलती आपूर्ति श्रृंखलाओं और भारतीय अर्थव्यवस्था के विशाल आकार और गति के धीमे प्रभाव के मेलजोल ने भारत को लेकर हलचल पैदा कर दी है।

अधिकांश लोगों की उम्मीद है कि भारत आने वाले वर्षों में 6-7 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करेगा और नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर 11 और 12 फीसदी के बीच रहेगी। 2030 के पहले हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे और वैश्विक वृद्धि में हम चरणबद्ध तरीके से तीसरा सबसे बड़ा योगदान करने वाले होंगे। वृद्धि के लिए जूझ रही दुनिया में भारत दूसरों से एकदम अलग होगा।

बहरहाल, क्या मजबूत आर्थिक प्रदर्शन का यह पूर्वानुमान अनिवार्य तौर पर मजबूत बाजार प्रतिफल देगा? आवंटकों के बीच एक स्पष्ट तथ्य यह है कि किसी देश की जीडीपी वृद्धि और बाजार के प्रदर्शन के बीच कोई रिश्ता नहीं है। चीन इसका सटीक उदाहरण है। बीते 30 वर्षों में बेमिसाल आर्थिक प्रदर्शन के बावजूद चीन ने डॉलर के संदर्भ में बमुश्किल पांच फीसदी सालाना प्रतिफल हासिल किया है।

अधिकांश निवेशक स्वत: यह मानते नजर आ रहे हैं कि भारत के मजबूत जीडीपी और शेयर बाजारों के बीच आने वाले दशक में आपसी रिश्ता रहेगा। बहरहाल, यह निश्चित नहीं है। यह भी एक तथ्य है कि भले ही हम आर्थिक दृष्टि से बेहतरीन दशक में प्रवेश कर रहे हों लेकिन शेयर बाजार में हम स्वर्ण युग से गुजर चुके हैं।

बीते 30 वर्षों की बात करें तो सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले अमेरिका द्वारा दिए गए 10 फीसदी कुल शेयर धारक प्रतिफल की तुलना में भारत ने अमेरिकी डॉलर में 8.5 फीसदी से नौ फीसदी प्रतिफल दिया जो दुनिया में तीसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। बीते 20 वर्षों में भारत ने करीब 12 फीसदी प्रतिफल दिया है और वह दुनिया का सबसे बेहतर प्रदर्शन वाला बाजार रहा है।

गत 10 वर्षों में भारतीय बाजारों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और करीब 11 फीसदी वृद्धि हासिल की। इससे बेहतर प्रदर्शन केवल अमेरिका ने किया। हमने लगातार आठ वर्षों तक सकारात्मक प्रतिफल हासिल किया और 22 में से 19 वर्षों तक सकारात्मक प्रदर्शन किया। बीते दो दशकों में केवल दो सालों यानी 2008 और 2011 में बाजार पांच फीसदी से नीचे गए।

क्या बाजार अर्थव्यवस्था के गति पकड़ने के पहले ही पूरी गतिशीलता दिखा चुके हैं? क्या मजबूत अर्थव्यवस्था के बावजूद अब हमारा सामना मध्यम प्रतिफल से होगा? दीर्घकालिक प्रतिफल के नजरिये से देखें तो मूल्यांकन कठिन है। हकीकत में भारतीय बाजार 20 गुना अग्रिम आय से अधिक पर कारोबार कर रहे हैं जो उनके मूल्यांकन इतिहास का सर्वाधिक है।

अधिकांश लोग कहेंगे कि आने वाले वर्षों में मूल्यांकन सामान्य होने पर चरों में कमी आएगी लेकिन 5-10 साल के नजरिये से देखें तो विस्तार की संभावना नहीं नजर आती। ज्यादा से ज्यादा चर वर्तमान स्तर के करीब बने रह सकते हैं।

सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP), बीमा, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) तथा नई पेंशन योजना की मदद से भारतीय बाजारों में खुदरा बचत की करीब 35 अरब डॉलर राशि आ रही है। आने वाले वर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 60 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। अगर वार्षिक विदेशी पोर्टफोलियो निवेश यानी एफपीआई की 20 अरब डॉलर की आवक को शामिल कर लें तो शेयरों में सालाना 80 अरब डॉलर की मांग देखने को मिल सकती है।

इससे पहले इस पैमाने पर विनिवेश या निर्गम नहीं देखे गए। सूचीबद्ध होने की इच्छा रखने वाली कंपनियों के लिए भारत असाधारण रूप से अनुकूल बाजार होगा। निजी इक्विटी जैसे प्रायोजक इस मांग को पूरा करने के लिए गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति सुनिश्चित करेंगे।

ऑस्ट्रेलिया तथा नॉर्डिक देशों मसलन डेनमार्क, नार्वे, स्वीडन आदि जैसे अन्य बाजार भी हैं जहां भारी भरकम घरेलू आवक ने चरों को ऊंचा रखा है। भारत इस मायने में विशिष्ट है कि इसके पूंजी नियंत्रण ने सुनिश्चित किया है कि शेयरों की आवक घरेलू बाजारों में ही रहे। ऐसी शेयर मांग अगर ढांचागत बनी रहे तो वह सतत उच्च कारोबार वाले चरों का माहौल बनाती है।

ऐसे में बाजार का संभावित प्रदर्शन पूरी तरह आय से संचालित होगा। बाजार की आय का सबसे बेहतर अनुमान नॉमिनल जीडीपी वृद्धि से लगता है। भारत की बात करें तो चूंकि हम कॉर्पोरेट मुनाफे के शेयर/जीडीपी के उच्चतम स्तर पर नहीं हैं और अर्थव्यवस्था का औपचारिक होना जारी है तो सूचीबद्ध शेयरों की आय सांकेतिक जीडीपी की तुलना से तेज रह सकती है।

ऐसे में बाजार से 12-15 प्रतिशत की सालाना आय संभव है। यह तथ्य कि हम निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय में सुधार के चरम पर हैं, बात को मजबूत करता है क्योंकि पूंजीगत व्यय चक्र में मुनाफा सबसे आगे होता है। असल बात यह सुनिश्चित करना होगी कि हम पूंजी जारी करने से होने वाली कमाई को कम न करें।

बाजार की आय वृद्धि और प्रति शेयर आय वृद्धि में अधिक अंतर नहीं होना चाहिए। चीन तथा कई उभरते बाजारों में यही हुआ। मजबूत आर्थिक वृद्धि कभी प्रति शेयर आय वृद्धि में नहीं बदली और ऐसा मूल्य में कमी के कारण हुआ। घरेलू नकदी को देखते हुए कॉर्पोरेट भारत में इक्विटी इश्यू को लेकर झुकाव होगा। कारोबारी भारत और बाजार को इक्विटी पर रिटर्न से ध्यान नहीं हटाना चाहिए।

यहां से भी तार्किक अनुमान लगाएं तो भारतीय शेयर बाजार विस्तारित अवधि तक डॉलर में 8-9 फीसदी तक का प्रतिफल दे सकते हैं। अगर इतना प्रतिफल मिल सका तो यह आने वाले वर्षों में भारत को विश्व स्तर पर आकर्षक बनाए रखने के लिए पर्याप्त होगा। यह आंकड़ा अतीत के प्रदर्शन से कमजोर होगा लेकिन फिर भी यह अन्य परिसंपत्ति वर्गों पर भारी पड़ेगा।

इसके लिए सात फीसदी की आर्थिक वृद्धि चाहिए जबकि मुनाफा मार्जिन भी बरकरार रखना होगा। बहरहाल मार्जिन को नियमन अथवा नए प्रवेश करने वालों से चुनौती मिल सकती है। भारत के आकर्षण वाले इस दशक में नकारात्मक बात यह है कि हमें वैश्विक और घरेलू स्तर पर प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है।

डिजिटल सार्वजनिक ढांचे का गहन इस्तेमाल भी नए कारोबारियों को इस बात में सक्षम बनाता है कि वे प्रतिस्पर्धा करें। इससे पुराने कारोबारियों के मुनाफे पर भी असर पड़ता है। बीते कुछ वर्षों में भारतीय उद्योग जगत में एकीकरण बढ़ा है। इससे मुनाफा बढ़ता है।

ईपीएस वृद्धि में भारत का प्रदर्शन उतारचढ़ाव वाला रहा है। 2003 से 2008 के बीच 20 फीसदी से अधिक की वृद्धि के बाद हमें पांच फीसदी से भी कम की ईपीएस वृद्धि के दौर का भी सामना करना पड़ा। बीते दो वर्षों में मुनाफे में यह हिस्सेदारी एक बार फिर बढ़ी जिससे ईपीएस में सुधार हुआ।

भारतीय बाजारों के बेहतर प्रदर्शन के लिए यह आवश्यक है कि जीडीपी की तुलना में कारोबारी मुनाफे की हिस्सेदारी में इजाफा हो। वैसे ही जैसा 15 वर्ष तक अमेरिका में हुआ। दीर्घकालिक स्थिति पर नजर डालें तो मिड और स्माल कैप शेयरों में अतियों के स्पष्ट संकेत हैं। वहां हम माध्य की ओर लौटेंगे जबकि लार्ज कैप अपनी खोई जमीन वापस पाएंगे। जोखिम को लेकर भी सोच में स्पष्ट बदलाव है।

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के शेयर, बिजली और ऊर्जा, पूंजीगत वस्तु और विनिर्माण क्षेत्र की कंपनियां आज तेजी पर हैं। हम उच्च गुणवत्ता वाले क्षेत्र में धीमी वृद्धि देख रहे हैं क्योंकि वहां मूल्यांकन चरम पर पहुंच चुका था।

आय का दायरा व्यापक होने और उपभोक्ता तथा कम पूंजी वाले कारोबार में सबसे तेज आय वृद्धि नहीं हासिल होने के कारण निवेशक अपने पोर्टफोलियो में विविधता ला रहे हैं और वहां पैसा लगा रहे हैं जहां उन्हें अपेक्षाकृत तेज आय वृद्धि नजर आती है। यह बदलाव जारी रहेगा और आने वाले दिनों में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए निवेशकों को या तो अपनी जोखिम क्षमता का पुनराकलन करना होगा या कमतर प्रदर्शन के दौर से गुजरना होगा।

यह सही है कि आर्थिक वृद्धि के कारण मजबूत बाजारों की कोई गारंटी नहीं है लेकिन भारतीय शेयर अभी भी आने वाले वर्षों में बेहतर नतीजे दे सकते हैं बशर्ते कि ईपीएस वृद्धि दो अंकों में बनी रहे और चरों में मामूली कमी आए। ऐसा संभव है लेकिन यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है।

First Published - January 10, 2024 | 10:24 PM IST

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