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भारत में मजबूत डेटा सुरक्षा कानून की जरूरत

Last Updated- December 20, 2022 | 11:38 PM IST
Supreme Court

डिजिटल के भविष्य पर हाल में एक परिचर्चा में विचार-विमर्श हुआ। इसमें निजी डेटा के संरक्षण के लिए कुछ रोचक तथ्य उजागर हुए। पाठकों को मालूम ही होगा कि भारत में व्यक्तिगत डेटा के संरक्षण के लिए कानून नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के नौ सदस्यीय पीठ ने 2017 में पुत्तस्वामी बनाम भारत संघ के मामले में एक राय से फैसला दिया था कि व्यक्तिगत डेटा की निजता मौलिक अधिकार है। इस क्रम में न्यायालय ने निजी डेटा की सुरक्षा के लिए कानून बनाने की सिफारिश की थी।

लोगों की राय जानने और उचित प्रारूप के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में गठित समिति हुई थी। समिति ने जुलाई 2018 में विधेयक का प्रारूप पेश किया था। इसके बाद सरकार कई बार प्रस्तावित विधेयक के प्रारूप में फेरबदल कर चुकी है। हर बार कानून अपने को निगरानी व डेटा हासिल करने की शक्तियां देने का प्रस्ताव करता है और इसे व्यापक व अस्पष्ट रूप से परिभाषित शक्तियों के कारण आपत्तियों का सामना करना पड़ा है। लिहाजा भारत कानूनी किंतु-परंतु में फंसा हुआ है। यह भारत के 75 करोड़ स्मार्टफोन उपभोक्ताओं के लिए निश्चित रूप से बड़ी खामी है। दुनिया में भारत के प्रति व्यक्ति डेटा की खपत और कुल मात्रा सबसे अधिक है।

इस परिचर्चा में शामिल सदस्यों ने अत्यधिक उत्साहवर्धक और गंभीर ढंग से चर्चा की। पैनल में शामिल सदस्यों ने कहा कि डेटा की मदद से विकास को गति दी जा सकती है। डेटा की मदद से सेवाओं को बेहतर किया जा सकता है और यह छोटे एवं मध्यम आकार के कारोबार की आमदनी बढ़ाने में मदद कर सकता है।

इस चर्चा के दौरान जब डेटा संरक्षण की बात आई तो पैनल में शामिल एक सदस्य का तर्क था कि निजी डेटा संरक्षण कानून की कोई जरूरत नहीं है। प्रमुख परामर्श मुहैया कराने वाली फर्म के सीनियर पार्टनर इस सदस्य ने यह तर्क दिया कि ‘जिम्मेदारी कंपनियां और संस्थान’ इन डेटा का गलत इस्तेमाल नहीं करेंगे और डेटा की चोरी भी नहीं करेंगे। इस दौरान उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि सहमति से डेटा का उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी दावा किया कि नियामकीय संस्थान जैसे भारतीय रिजर्व बैंक और वित्तीय संस्थान हमेशा सहमति के आधार पर डेटा का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि उन्होंने माना कि कुछ कारोबारियों के डेटा के गलत इस्तेमाल की आशंका है लेकिन बड़े पैमाने पर डेटा का इस्तेमाल व्यापक स्तर पर जिम्मेदार इकाइयों ने किया है।

इस पैनल में शामिल एक अकादमिक सदस्य ने अफ्रीका में खुदरा कारोबारियों की मदद के लिए शानदार काम किया है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर डिजिटल डोमेन में सीमा पार विनियमन होता है। जैसे ईयू का जनरल डेटा संरक्षण विनियमन या जीडीपीआर कानून के मामले में सर्वश्रेष्ठ है। यूरोपियन यूनियन में काम करने की इच्छुक बहुराष्ट्रीय कंपनियां और कॉरपोरेट को जीडीपीआर का पालन करने के लिए सिस्टम बनाना ही होगा। इसका परिणाम यह होगा कि यदि अन्य भौगोलिक इकाइयों में कम संरक्षण (भारत के मामले में गैर मौजूद) है तो भी समुचित सुरक्षा जीडीपीआर स्तरों की होगी।

इस पैनल में शामिल तीसरे सदस्य न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्ण समिति में थे। उन्होंने स्वीकार किया कि बीते पांच सालों के दौरान प्रारूप में कई बार बदलाव किए जाने के बावजूद सरकार और कारोबार के व्यक्ति विशेष की जिंदगी में गुपचुप रूप से ताकझांक से पर्याप्त सुरक्षा नहीं मुहैया कराई गई है। सरकार मालिकाना डेटा की मांग कर रही है।
पहला तर्क – कानून की जरूरत नहीं है – इसे खारिज किया जा सकता है। यह तर्क वैसे ही है, जैसे जिम्मेदार नागरिक हत्या नहीं करते हैं और ऐसे कानून की जरूरत नहीं है। विचित्र बात यह है कि बड़े व्यवसायों और सरकार के साथ काम करने वाला एक सलाहकार यह तर्क दे सकता है। भारत में बड़े पैमाने पर डेटा के दुरुपयोग के बेहद खराब व याद रखने योग्य उदाहरण हैं। यह भी संभव है कि कानून की कमी के कारण डेटा का दुरुपयोग होता है।

दूसरा तर्क सीमा पार कानूनी प्रणाली के बारे में कुछ अलग है। इसका अपना फायदा भी है और नुकसान भी। यदि कोई अत्यधिक वॉल्यूम और उच्च वृद्धि का मार्केट वाला कारोबार भारत में केंद्रित है तो वह ईयू में नहीं लागू तरीकों का ढंग विकसित कर लेगा। लिहाजा कारोबार ऐसी परिकल्पना स्थापित कर लेगा कि उसके लिए बेहतर सुरक्षा वाले बाजार में कारोबार करना मुश्किल हो जाएगा। इसी क्रम में देखा जाए तो वैश्विक क्लाउड प्रोवाइडर और डेटा सेंटर बिज़नेस भारत में कारोबार स्थानांतरित करने को लेकर बेहद चौकस होंगे। इसका कारण यह है कि क्षेत्र में उनके बेहतर सुरक्षा वाले ग्राहक नाखुश हो जाएंगे।

अन्य सवाल यह उठता है : भारत में कई कारोबार कानून से बेखौफ होकर अपने कार्यों को अंजाम दे रहे हैं, ऐसे में देश में बेलगाम डिजिटल के क्षेत्र में कितना विकास हो सकता है? इसका जवाब ढूंढ़ना मुश्किल है। ऐसे में खराब कानून विकास को अवरुद्ध कर सकता है या वटवृक्षों को कारोबार फैलाने का मौका दे सकता है। हालांकि अच्छा कानून निजता का उल्लंघन किए बिना विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। सिद्धांत रूप से भारत के पास ऐसे संस्थान है जो कानूनों को बेहतर बना सकते हैं। हालांकि कोई भी ऐसा कानून नहीं है जिसमें खामियां नहीं हों और उसकी बखियां नहीं उधेड़ी जा सकती हो।

First Published - December 20, 2022 | 9:25 PM IST

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